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________________ विचारों की दृष्टि में व्यक्ति और समाज और उनका सम्बन्ध ६७ व्यष्टि - समष्टि, संसार - निर्वाण में, व्यवहार -परमार्थ में, व्यष्टि समष्टि शास्त्र में द्वन्द्व नहीं, किन्तु व्यवहार में हो जाता है । संसार की अपेक्षा निर्माण पर जोर पड़ता है । इसलिए हिचक के साथ संसार का काम करते हैं । आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक सभी काम महत्व के हैं। कब किसके लिए क्या जरूरी है, या जरूरी नहीं, यह विचारणीय हो जाता है । परम्परागत बौद्ध दृष्टि में व्यष्टि पर जोर पड़ गया है, इसलिए शायद समष्टि पर थोड़ा अतिरञ्जित बल देना जरूरी हो जाता है । चित्त के अन्दर ही सारा व्यापार चले तो बाह्य छूट जाता है और जो गड़बड़ियाँ हैं, वह बनी रहती हैं । फिर वह अन्तर के काम को भी गड़बड़ा देती हैं । इसलिए प्रज्ञा में अद्वय देखते हुए भी उपाय की दृष्टि से वाह्य आर्थिक, राजनीतिक-सामाजिक कार्य का भी महत्त्व हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only परिसंवाद - २ www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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