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________________ भारतीय शास्त्रों में समता डॉ. रघुनाथ गिरि भारतीय शास्त्रों की व्यापकता एवं विपुलता को देखते हुए तथा समता के विविध अर्थों में विवेचन की सम्भावना को ध्यान में रखते हुए यह कहना पड़ता है कि इस विषय पर एक छोटे निबन्ध में समग्र दृष्टि से विचार करना सम्भव नहीं है। अतः प्रस्तुत निबन्ध में विषय से सम्बन्धित कतिपय प्रश्नों पर अत्यन्त संकुचित दृष्टिकोण से विचार व्यक्त किया गया है । ___मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारतीय शास्त्रों में समता या सामाजिक समता सम्बन्धी प्रकरणों, वाक्यों, उद्धरणों का संग्रह, निर्देश एवं व्याख्यान, एक पक्ष है और शास्त्रों के समय में विद्यमान एवं शास्त्रों में चर्चित सामाजिक व्यवस्था में उन पहलुओं का अन्वेषण जिनके आधार पर सामाजिक समता की स्थापना की सम्भावना हो सकती है, दूसरा पक्ष है। वर्तमान युग में समता के जोरदार उद्घोष के होते हुए बहुविध विषमताओं की विभीषिका से त्रस्त चिन्तक अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से कुछ ऐसे तत्त्व की खोज करना चाहते हैं जिसमें हमारी आधुनिक समस्याओं (जो मुख्य रूप से विषमताओं के कारण उत्पन्न हुई हैं) का कुछ सीमा तक समाधान हो सके, और समता के नारे की सार्थकता स्थापित को जा सके। उक्त आवश्यकता एवं विवेच्य द्विविध पक्षों को ध्यान में रखकर यदि भारतीय दर्शनों पर एक विहङ्गम दृष्टिपात किया जाय तो यह कहा जा सकता है कि भारतीय दर्शनों का प्रतिपाद्य विषय समाज या सामाजिक सम्बन्ध न होने के कारण सामाजिक समता से सम्बन्धित सन्दर्भो का नितान्त अभाव भले न हो, पर उसकी कमी अवश्य है। सामान्यतया समता के दृष्टिकोण से भारतीय दर्शनों को हम दो वर्गों में रख सकते हैं--(क) तात्त्विक समता और व्यावहारिक विषमता (ख) तात्त्विक विषमता और व्यावहारिक समता। प्रथम के ऐकान्तिक दृष्टान्त के रूप में अद्वैत वेदान्त को रखा जा सकता है जो ब्रह्म या परतत्त्व की एकता या समानता को स्वीकार करते हुए नाम-रूपात्मक व्यावहारिक विषमता का पक्षपाती है। दूसरे के ऐकान्तिक दृष्टान्त के रूप में बौद्धदर्शन को रखा जा सकता है जो स्वलक्षण की विषमता के साथ सामान्य परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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