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________________ २८० भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥' इस प्रपत्ति की विशेषता ही यही है कि यह मार्ग सभी वर्गों के लिए सुलभ है। सनत्कुमारसंहिता का वचन है अनन्योपायशक्तस्य प्राप्येच्छोऽधिकारिता। प्रपत्तौ सर्ववर्णस्य सात्त्विकत्वादियोगतः ॥ सा हि सर्वत्र सर्वेषां सर्वकामफलप्रदा। इति सर्वफलप्राप्तौ सर्वेषां विहिता यतः ॥ शरणागति प्राणिमात्र के लिए है-यह तथ्य शरणागति के स्वरूप में ही निहित है। यहाँ लक्ष्मीतन्त्र का श्री और इन्द्र का संवाद द्रष्टव्य है। श्री ने शक्र से क्लेशसागर में डूबे हुए सभी प्राणियों के उद्धार का साधन पूछा अमी हि प्राणिनः सर्वे निमग्नाः क्लेशसागरे । उत्तारं प्राणिनामस्मात्कथं चिन्तयसि प्रभो॥ इस प्रश्न से प्रेरित होकर शक्र ने शरणागति का विस्तार से वर्णन किया है। इस शरणागति के ६ अंग हैं आनुकूल्यस्य सङ्कल्पः प्रातिकूल्यस्य वर्जनम् । रक्षिष्यतीति विश्वासो गोप्मृत्वरणं तथा। आत्मनिक्षेपकार्पण्ये षड्विधा शरणागतिः ॥ यहाँ प्रयुक्त प्रथम दो प्रपत्ति की विधाओं का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसी तन्त्र में कहा गया है आनुकल्यमिति प्रोक्तं सर्वभूतानुकूलता। अतःस्थिताऽहं सर्वेषां भावानामिति निश्चयात् ॥ मयीव सर्वभूतेषु ह्यानुकूल्यं समाचरेत् । तथैव प्रातिकूल्यं च भूतेषु परिवर्जयेत् ॥' शरणागति के प्रथम दो अंग है- आनुकूल्यसंकल्प' तथा 'प्रातिकूल्य-वर्जन' । यहाँ ईश्वर में ही अनुकूल आचरण के संकल्प तथा प्रतिकूल आचरण के वर्जन की बात नहीं कही गयी है। 'सर्वभूतानुकूलता' भी उसी आनुकूल्यसंकल्प में निहित है । और १. गीता, १८ ६६, द्रष्टव्य लक्ष्मीतन्त्र, १६-४३, ४४ । २. सनत्कुमारसंहिता। ३, लक्ष्मीतन्त्र, १७ : ४७ । ४. वही, १७.६०.६१ । ५५. वही, १७.६६.६७ । परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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