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________________ वैष्णवन्त्रों के सन्दर्भ में समता के स्वर विश्वामित्रसंहिता में भी प्रायः इसी प्रकार की बात कही गयी हैशिष्याणां लक्षणं वच्मि तच्छृणुस्व समाहितः । त्रिषु वर्णेषु सम्भूतः प्रशस्त कुलसम्भवः ॥ ' तथा स्त्रियः शूद्राश्चानुलोमाः कल्याणगुणसंयुताः । यदि तानपि शिष्यत्वे गृह्णीयात् कृपया गुरुः ॥ तान्त्रिक दीक्षा में सभी वर्णों का अधिकार है -- इसमें दो मत नहीं । महाभारत का भी निम्नोद्धृत स्थल उक्त मत की पुष्टि में सहायक है ब्राह्मणैः क्षत्रियैर्वैश्यैः शूद्रैश्च कृतलक्षणैः । अर्चनीयश्च सेव्यश्च नित्ययुक्तैः स्वकर्मसु । सात्त्वतं विधिमास्थाय गीतः सङ्कर्षणेन यः ॥ ३ पाञ्चरात्र आगम की अहिर्बुध्न्यसंहिता में वेद तक में चारों वर्णों के अधिकार की बात कही गयी है— ये हि ब्रह्ममुखादिभ्यो वर्णाश्चत्वार उद्गताः । ते सम्यगधिकुर्वन्ति व्यय्यादीनां चतुष्टयम् ॥४ किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि स्वयं पाञ्चरात्र आगमों में उपर्युक्त मत बहुत समादृत नहीं हो पाया । पाञ्चरात्र आगमों में प्रपत्ति का सिद्धान्त प्रपत्ति अथवा शरणागति का सिद्धान्त पाञ्चरात्र आगमों का अत्यन्त महत्त्व - पूर्ण सिद्धान्त है । विभीषण की शरणागति के प्रसङ्ग में राम के द्वारा की गयी घोषणा पाञ्चरात्र आगमों में शरणागति की स्वरूपनिरूपिका मानी गयी है । राम की उक्ति है Jain Education International २७९ सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते । अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाभ्येतद् व्रतं मम ॥ ५ यहाँ 'सर्वभूतेभ्यः' पद महत्त्वपूर्ण है । इसके अतिरिक्त गीता का निम्न श्लोक चरममन्त्र के रूप में पाञ्चरात्र सम्प्रदाय में समादृत है १. विश्वामित्रसंहिता ३।१७ । ३. महाभारत, भीष्मपर्व | ५. रामायण, युद्ध०, १८.३३ । २. विश्वामित्रसंहिता, ३।२७ । ४. अहिर्बुध्न्य, १५.२०.२१ । For Private & Personal Use Only परिसंवाद - २ www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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