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________________ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं इसका यह भी अर्थ नहीं हो सकता कि सामाजिक संस्थाओं और उनसे सम्बन्धित घटनाओं की उपेक्षा की जाए। - इस दिशा में विचार करने की दृष्टि से निम्नलिखित कुछ विषयों के सङ्केत हो सकते हैं। बौद्ध दर्शन के प्रस्थानों में व्यक्ति (मनुष्य) का स्वरूप क्या है ? और सत्ता (अस्तित्व) के क्या-क्या लक्षण हैं ? उस स्थिति में व्यक्ति और समाज की अवधारणा क्या बनती है ? व्यक्ति और समाज के बीच का सम्बन्ध-सूत्र क्या है ? व्यक्ति और समाज में परस्पर एक दूसरे के प्रति किस प्रकार का उत्तरदायित्व माना जाएगा? इन सम्बन्धों के बीच नीति के निर्धारण के लिए बौद्ध परम्परा के कौन से अभिमत निर्णायक होंगे? उपर्युक्त वैचारिक मान्यताओं की पृष्ठभूमि में जीवन के सम्बन्ध में मूल्यात्मक जिन विशेष प्रश्नों की ओर ध्यान जाता है, उसमें प्रधान है-व्यक्ति की स्वतन्त्रता, सामाजिक समता और उनके बीच मर्यादा का प्रश्न । इस सन्दर्भ में पुनर्जन्मवाद और कर्मवाद की बौद्ध मान्यताओं की ओर ध्यान आकृष्ट होता है, उसकी सङ्गति कहाँ तक बैठेगी ? इसी प्रकार अनित्यता एवं दुःखता, वैराग्य एवं निर्वाण की मान्यताओं की पृष्ठभूमि में लोकहित की धारणा एवं योजना भी विचारणीय होगी। परिसंवाद गोष्ठी के विषयों पर विचार करने के लिए पाश्चात्य विद्वानों की परिभाषाओं से नितान्त रूप में न तो बँधा रहा जा सकता है और न तो उनकी उपेक्षा की जा सकती है, इसी प्रकार बौद्ध-शास्त्रों की पंक्तियों से भी। दोनों में ही परिवर्तन एवं सुधार की सम्भावनाएँ की जा सकती हैं। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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