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________________ बौद्ध दर्शन : व्यक्ति, समाज और उसके सम्बन्ध व्यक्ति समाज और उसके सम्बन्ध को विचार का प्रमुख विषय बना कर पाश्चात्य दार्शनिकों, समाजवैज्ञानिकों और राजनीतिशास्त्रियों ने शताब्दियों तक चिन्तन किया है । उसके विकास का विस्तृत इतिहास है । उनकी यह भी एक विशेषता थी कि उनके विचार विद्वानों की गोष्ठियों या पुस्तकों तक ही सीमित नहीं रहे, प्रत्युत उनका प्रभाव व्यक्ति, समाज और राज्यों पर पड़ता रहा और उसके फलस्वरूप प्राचीन मान्यताओं में संशोधन एवं परिवर्तन होते रहे । जिससे प्राचीन के स्थान पर a - at प्रणालियाँ परिचालित हो सकीं। इस विशेष प्रकार के चिन्तन ने न केवल पाश्चात्य देशों को अपितु कमवेश वर्तमान विश्व के अधिकांश देशों को प्रभावित किया है । इनके प्रभाव क्षेत्र में उन देशों का जीवन-दर्शन भी आया, जिनकी सहस्राब्दियों से अपनी परम्परागत श्रेष्ठ जीवन परम्परा थी । भारतीय पुनर्जागरण के साथ इस देश ने भी उस चिन्तन प्रणाली को अङ्गीकार किया है । दार्शनिक चिन्तन में भारतीय मनीषी अग्रणी रहे हैं । अनुभव एवं चिन्तन के आधार पर उन्होंने जीवन की विविधता और गम्भीरता का सम्यक् आकलन किया और उसे श्रेष्ठतम उद्देश्य प्रदान किया। एक विशेष सन्दर्भ में उन्होंने समसामयिक युग में व्यक्ति, राज्य और समाज को अपने जीवन-दर्शन से प्रभावित किया । आज विचारों के नये सन्दर्भ में उस जीवन-दर्शन एवं जीवन-विधि का पुनर्मूल्याङ्कन होना चाहिये । इस दिशा में भारतीय दर्शनों ने विशेषकर बौद्धदर्शन एवं उसकी जीवन प्रणाली ने अपने प्रारम्भ काल से ही न केवल भारतीय अपितु विश्व के विराट् जन-जीवन को प्रभावित किया है। ऐसे महत्त्वपूर्ण दर्शन के आलोक में व्यक्ति, समाज और उससे सम्बन्धित प्रश्नों का आज विवेचन करना बहुत ही आशाप्रद होगा । कहना नहीं है कि इस प्रसङ्ग में अन्य भारतीय दर्शनों का और पाश्चात्य विचारकों का तुलनात्मक अध्ययन भी इस विचार गोष्ठी का पूरक होगा । स्पष्ट है कि बौद्धदर्शन प्राचीन विश्व में चाहे जितना भी मानवीय चिन्तन की दृष्टि से उर्वर एवं गतिशील रहा हो, किन्तु उसके बौद्धिक एवं सामाजिक प्रश्न प्राचीनकाल के हैं । इस स्थिति में व्यक्ति, समाज और उनके सम्बन्धों के विषय में विचार करते समय उसकी दार्शनिक सम्भावनाओं पर अधिक ध्यान देना होगा । परिसंवाद - ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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