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________________ प्राचीन संस्कृत-साहित्य में मानव समता २२७ भी अधिक सम्भावित हैं । अतः प्राचीन काल से ही राजा लोग राज्य कार्य के संचालन के लिये, उसे सही एवं सरल ढंग से चलाने के लिये, मन्त्रियों की निशक्ति किया करते थे । आपस्तम्बधर्मसूत्र' में 'अमात्य' शब्द ‘मन्त्री' के अर्थ में अर्थात् अपने वास्तविक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कदाचित् अपने सही एवं अभ्रान्त अर्थ में 'अमात्य' शब्द का यह प्रथम प्रयोग है। मन्त्रिपरिषद् का गठन मन्त्रिपरिषद् के गठन के पूर्व यह बतला देना आवश्यक है कि प्राचीन साहित्य में अमात्य एवं मन्त्री में अन्तर माना जाता था। अमरकोश के अनुसार अमात्यों के दो भेद हैं। जो अमात्य 'धीसचिव' होते थे उन्हें मन्त्री कहा जाता था और ऐसे अमात्य जो मन्त्री नहीं थे 'कर्मसचिव' कहलाते थे। वाल्मीकि रामायण में भी 'अमात्य' एवं 'मन्त्री' में अन्तर बतलाया गया है। कौटिल्य के अनुसार भी अमात्यों एवं मन्त्रियों में अन्तर है । कौटिल्य ने मन्त्रियों को अमात्यों की अपेक्षा अधिक उच्चपदाधिकारी माना है। महाभारत में अमात्यों के इन द्विविध रूपों की बहुत सुस्पष्ट झांकी मिलती है। शान्तिपर्व में, राजनीति के परमाचार्य तथा धनुर्विद्या के अप्रतिम योद्धा भीष्म के अनुसार अमात्य परिषद् की सदस्य संख्या सैंतीस होनी चाहिए। इस अमात्य परिषद् में सभी वर्गों का समुचित प्रतिनिधित्व देखा जा सकता है। इसमें चार वेदविद् ब्राह्मण, आठ शूरवीर क्षत्रिय, इक्कीस सम्पत्ति-सम्पन्न वैश्य, तीन विनीत एवं पवित्र शूद्र, तथा एक पुराणविद्या का ज्ञाता सूत, होने चाहिए । वस्तुतः यह सामान्य अमात्यपरिषद् से भिन्न जान पड़ती है। इसमें संसद का सा रूप दिखलाई पड़ता है। सम्भवतः राज्य के सारे मसले विचारार्थ सर्वप्रथम इसी परिषद् के समक्ष प्रस्तुत किये जाते थे । सम्भवतः यह लोवर परिषद् थी। इस परिषद् में भली-भाँति विचार कर लिए जाने पर ही विषय अपर परिषद् में जाता था। इसी अपर परिषद् को मन्त्रि-परिषद् कहा गया है । इसमें आठ मन्त्री हुआ करते थे। कदाचित् राजा ही इस परिषद् का अध्यक्ष हुआ करता था।" इस परिषद् के सदस्य किस-किस जाति के लोग होते थे, यह निर्देश नहीं किया गया है । सम्भवतः इसमें उच्च वर्ग के ही लोग रहा करते थे। १. 'गुरूनमात्यांश्चैव नातिजीवेत्' अर्थात् 'राजा को अपने गुरुओं एवं अमात्यों से बढ़कर सुख पूर्वक नहीं जीना या रहना चाहिए ।' २।१०।२५।१०। २. अयोध्याकाण्ड १।२।१७। ३. अर्थशास्त्र १८। ४. शान्तिपर्व ८५।७-११ । ५. अष्टानां मन्त्रिणां मध्ये मन्त्रं राजोपधारयेत् । शान्ति० ८५।११ । परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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