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________________ भारतीय बौद्ध कला में व्यक्ति एवं समाज से सम्बन्धित दृष्टिकोण डॉ० दीनबन्धु पाण्डेय लुम्बिनी वन में भगवान बुद्ध का जन्म मात्र एक संयोग था किन्तु यह संयोग अत्यन्त महत्वपूर्ण था। शुद्धोदन-परिवार एवं शाक्य समाज से दूर जा पड़ना एक विशेष 'घटनात्मक प्रतीक' बन जाता है । बुद्ध का शैशव एवं किशोर जीवन इस ऊहापोह में ही बीता कि उनके जीवन की सार्थकता क्या है ? उनका परिवार उन्हें अपने सामाजिक जाल में बाँधना चाहता था। सुख-सुविधाओं के प्रलोभनों के बीच उन्हें रखा गया, किन्तु वे उसमें रमे नहीं। कभी खेत की मेड़ पर ध्यानस्त हो गए, तो कभी सांसारिक दुःखों की गहरी अनुभति के क्रम में अपने द्वारा भोगे जा रहे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन से विरत हो जाने का संकल्प ले लिया, और एक दूसरा संयोग आया कि उन्होंने महाभिनिष्क्रमण किया। महाभिनिष्क्रमण एक दूसरी 'घटनात्मक प्रतीक' है । जन्म के समय अदृश्य शक्ति द्वारा परिवार एवं समाज से अलग-थलग कर डाले गये। शिशु ने अपने बुद्धि विवेक से युवावस्था में स्वयं को परिवार एवं समाज से अलग कर लिया। भगवान बुद्ध के जीवन, दर्शन में ऐसी परिस्थिति का प्रभाव दिखलाई देता है। व्यक्ति तथा परिवार एवं समाज के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण बौद्ध समय-प्रवाह के साथ देखा जा सकता है। सतत् प्रयत्नों के फलस्वरूप बुद्ध को संबोधि की प्राप्ति हुई । और अनिच्छा होते हुए भी दैवीय निवेदनों के कारण उन्होंने उपदेश देकर मानव कल्याण का कार्यारम्भ किया। धर्मचक्रप्रवर्तन के साथ वे एक बार फिर समाज से सम्बन्धित हो गए, जिसे छोड़कर वे तप साधना के लिए चले गए थे । व्यक्ति, व्यक्ति के उत्थान एवं समाज से अलग होते हुए तथा जुड़ते हुए सम्बन्ध की स्थितियाँ बौद्ध साहित्य एवं कला में सर्वत्र द्रष्टव्य है। मैं आप लोगों के सामने भारतीय बौद्ध कला में प्राप्त अङ्कनों के माध्यम से अपनी बात प्रस्तुत करना चाहता हूँ। कला के स्वरूप निर्धारण में वे भाव तथा दृष्टिकोण संन्निहित होते हैं जो तत्कालीन विचारकों अथवा दार्शनिकों द्वारा निर्देशित होते हैं। कभी-कभी ये निर्देश स्पष्ट रूप से किन्तु अधिकांश तथा ऐसे निर्देश प्रच्छन्न रूप से अथवा प्रतीकात्मक रूप से ही अङ्कित हुआ करते हैं। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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