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________________ १६६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ छोड़कर बहुत आगे निकल जाता है, श्रेष्ठ ज्ञान के जगत में। यह विचार भी संसार के विचारों के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है। इन दोनों माडल्स की तुलना से दो परम्पराओं में व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध के प्रति दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला जा सकता है। बौद्ध माडल में व्यक्ति अनन्य रूप से समाज पर अन्योन्याश्रित है। विशिष्ट व्यक्ति एक निश्चित मार्ग, निश्चित सम्बन्धों और मूल्यों की मर्यादा के अन्तर्गत चलने के लिए अन्य व्यक्तियों को प्रेरित करता है, उसके साथ आमने-सामने सम्बन्ध स्थापित करता है, तथा परोक्ष सम्बन्धों से जुड़ा रहता है। ब्राह्मण माडल इससे भिन्न है, इसमें व्यक्ति एक अवस्था पर आकर समाज से अलग हो जाता है। वह समाज का उपभोग उस समय तक करता है जब तक वह स्वयं स्वतन्त्र रूप से अस्तित्व बनाये रखने में समर्थ नहीं है । वस्तुतः वह समाज का उपयोग उसी प्रकार करता है जिस प्रकार एक चिड़िया अण्डा देने के लिए घोसला बनाती है और जब अण्डा दे देती है, चूज़ा उड़ने लायक हो जाता है, तो घोसला छोड़कर आकाश में विचरण करने लगती है। इस अवस्था की एक स्थिति में आकर व्यक्ति अकेला चलने लगता है। वह दूसरों के लिए मार्ग नहीं ढूँढ़ता, सम्बन्धों और मूल्यों को परिमार्जित नहीं करता, बल्कि सभी सामाजिक मूल्यों को तोड़कर दिखला देता है कि सामाजिक तत्त्व से भी परे एक सत्य है, जिसकी वह साधना करता है। समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ उसका आमने-सामने सम्बन्ध नहीं रहता। वह समाज से दूर रहता है, ध्रुवतारा की तरह जो समुद्र से बहुत दूर नक्षत्र लोक में एक दूसरी जगत् में रहता है और समुद्र के नाविक उसे देखकर अपनी यात्रा तय करता है। इन दोनों माडल्स में कौन अच्छा अथवा बुरा है यह असंगत प्रश्न है। व्यक्ति और समाज के परस्पर सम्बन्धों के आयाम कितने व्यापक हैं यही उद्धरित करना मेरे प्रस्तुत व्याख्यान का लक्ष्य रहा है। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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