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________________ महायानी साधक की दृष्टि से व्यक्ति, समाज तथा उनके सम्बन्ध १२७ ग्रहण करते हैं। साधक नागार्जन कृत श्रामणेर कारिका से लेकर तन्त्रराज गद्यसमाज तक के सम्पूर्ण सूत्र एवं तन्त्रों की शिक्षा प्रामाणिक गुरु से ग्रहण करते हैं। प्रामाणिक गुरु भी विनय, महायान एवं तन्त्र के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। बौद्ध तन्त्र के मूल संवर चौदह हैं। साधक को इन चौदह संवरों का पालन करना पड़ता है । वे उत्पत्तिक्रम एवं सम्पन्नक्रम की भावना तथा अभ्यास करते हैं । तन्त्र की दीक्षा प्राप्त करने के बाद संवर एवं समय का पूर्ण पालन करना पड़ता है। तन्त्र सिद्धि का मूल संवर एवं समय है। इन दोनों के उचित पालन से ही अन्य सभी शिक्षाएँ फलदायक होती हैं। महायानी साधकों को तीनों यानों के मार्गों का पूर्ण अभ्यास करना पड़ता है। क्योंकि भगवान् बुद्ध ने इन तीनों यानों को एक व्यक्ति के इसी अल्प जीवन में ही बुद्धत्व प्राप्त कर सकने के लिए बताया है। जब तक सभी जीवों को बुद्धत्व की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक एक महायानी साधक की समाज सेवा पूर्णरूप से सम्पन्न नहीं होती। परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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