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________________ १२६ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं यदि महायानी प्रयोग मार्ग से भावना में प्रवेश करने वाला हो, तो उन्हें क्लेश और ज्ञेय दोनों आवरणों को भावना मार्ग की अवस्था में प्रहीण करना चाहिए। (५) अशैक्ष्य मार्ग प्रहीण भावना हेय या समस्त आवरणों के प्रहीण हो जाने पर अशैक्ष्य मार्ग प्राप्त होता है। अशैक्ष्य मार्ग की प्राप्ति तथा बुद्धत्व की प्राप्ति एक ही समय में होती है । क्लेशों का क्षय करना तथा ज्ञेयों को जानना शेष नहीं रहता है । अतः यह अशैक्ष्य मार्ग कहा गया है। चिन्तकों की दृष्टि में भेद प्रत्येक देश एवं विदेश के समाज में अनादिकाल से समाज के हितैषी होते रहे हैं। ये चिन्तक समाज को अपनी-अपनी दृष्टि से देखते हैं। भारत, यूरोप, अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया के अनेक विचारकों ने समाज में सुख एवं शान्ति के लिए सतत प्रयास किया है। स्वर्गीय पण्डित जवाहरलाल नेहरु तथा महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने विश्व कल्याणार्थ अपने जीवन को समर्षित किया है। उन्होंने केवल भारत के हित के लिए ही नहीं, बल्कि एशिया, यूरोप एवं अन्य देशों के लिए भी सोचा । इस प्रकार पश्चिम के अनेक चिन्तकों ने भी समाज को सुखी बनाने तथा उसके उत्थान के लिए गम्भीरता पूर्वक विचार किया। इन विचारकों की दृष्टि एवं क्षेत्र महायानी साधकों की अपेक्षा सीमित और संकुचित होते हैं। महायानी साधकों के कल्याण पात्र केवल सामाजिक प्राणी नहीं, बल्कि त्रिलोक के समस्त जीव हैं। वे प्राणियों को सम्यक् सम्बुद्धत्व प्राप्त कराने के लिए दशों दिशाओं में विद्यमान समस्त बुद्धों एवं बोधिसत्त्वों के सम्मुख बोधिचित्त उत्पाद करते हैं । बोधिचित्तोत्पाद कर बोधिसत्त्वों की शिक्षाओं का अभ्यास करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा भी करते हैं। महायानी साधकों की शिक्षा दो प्रकार की होती है। वे अपने मन विनीत बनाने के लिए दानादि छः पारमिताओं का अभ्यास करते हैं तथा दूसरों के मन को विनीत के लिए चतुःसंग्रह का अभ्यास करते हैं । महायानी साधक प्राणियों के हितार्थ चिन्तन करते हैं क्योंकि इनका साध्य ही समाज का कल्याण करना है। वे कभी भी संसार में दुःखी प्राणियों को नहीं छोड़ना चाहते। कुछ साधक समाज में साक्षात् समाज सेवियों की तरह गाँव-गाँव घूम-फिर कर समाज की सेवा करते हैं। कुछ साधक एकान्त में रह कर त्रिलोक के प्राणियों के हित के लिए पारमिताओं का पालन करते हैं। साधक गुरूसेवा से प्रारम्भ कर शमथ और विपश्यना तक सम्पूर्ण महायानी सूत्रों का निष्ठापूर्वक श्रवण, चिन्तन एवं भावना करते हैं । वे सूत्र पक्ष के सम्पूर्ण आगम एवं शास्त्रों का अध्ययन सम्पन्न कर तत्पश्चात् तन्त्र के बीस गुणों से युक्त गुरू से तन्त्र का अभिषेक परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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