SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएं __अन्यथा एक स्कन्ध का दूसरे स्कन्ध के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध है और पाँचो स्कन्ध मिलकर किस प्रकार की संरचना करते हैं ? इन प्रश्नों का समुचित उत्तर उनकी अपनी इदन्ता को स्थापित किये बिना नहीं दिया जा सकता है और वैसा करने में हम अपने आप को असमर्थ पाते हैं। ४-आंग्ल भाषा में व्यक्तित्व के लिए 'पर्सनैल्टी' शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसकी व्युत्पत्ति यूनानी धातु शब्द 'पर्योना' से की जाती है और पर्योना का अर्थ है 'मुखौटा'। मुखौटा चाहे चित्र-विचित्र सामग्री लिये हुए हो अथवा एक ही रंग रूप की विभिन्न आभाओं (छायाओं) का समूह रूप हो, यथार्थ मुख की इदन्ता को ढाँपने वाला (संवृति सत्रूप) ही होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि परमार्थतः तो व्यक्तित्व क्या है, और कैसा है ? ऐसा ही कहा ही नहीं जा सकता, क्योंकि कल्पनापोढ प्रत्यक्ष का विषय तो वह भले ही हो, वर्णन से परे है और व्यवहार में व्यक्तित्व की स्थिति किसी मुखौटे की सी ही है और कठिनाई विशेष यह है कि 'व्यक्तित्व रूपी एक मुखौटे' को उतार देने पर भी हमें कोई दूसरा मुखौटा ही मिलता है और तब तक मुख के दर्शन नहीं होते जब तक कि सभी मुखौटे उतार न दिये जाएँ, किन्तु वैसा करने पर 'मुख' कैसा है यह कहा नहीं जा सकता। अस्तु व्यक्तित्व की इदन्ता एक इकाई के रूप में स्थापित नहीं की जा सकती क्योंकि प्रत्येक मुखौटा जैसे अपनी निर्वाण सामग्री के विचार से व्यष्टि रूप न होकर समष्टि रूप ही है उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्तित्व एक व्यष्टि भी है और समष्टि भी है या यों कहना चाहिए कि व्यक्तित्व न तो व्यष्टि ही है, न समष्टि ही है, न दोनों भी है और न दोनों के बिना ही है। समष्टि को 'सर्वस्व' अथवा 'समग्र' रूप समझते हुए उसकी चर्चा और उस पर विचार सर्वज्ञता के सन्दर्भ में किया जा सकता है। प्रक्रान्त लेखक ने सर्वज्ञता पर भी विस्तृत विचार अन्यत्र किया है', अतः ऐसा उसे ठीक प्रतीत होता है कि उस विचार में समष्टि सम्बन्धी मूल बिन्दु की संक्षिप्त चर्चा यहाँ किया जाना उचित एवं पर्याप्त रहेगा। १. फरवरी (१४-१९) १९७२ में मगध विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय विचारगोष्ठी में प्रस्तुत लेख में । आंग्लभाषा का यह लेख मई १९७७ के बुद्धिस्ट स्टडीज़ (दि जनरल आफ द डिपार्टमेण्ट आफ बुद्धिस्ट स्टडीज, यूनिवर्सिटी आफ देहली, दिल्ली) में छपा है। शीर्षक है-बुद्धिस्ट भ्यु आफ ओम्निसीयंस : रिलीजिएस फिलासिफिकल साइन्टिफिक'..? परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy