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________________ मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के जीवनदृश्य सकते।' इसपर नेमिनाथ ने मुस्करा कर शंख को सहज ही उठा लिया और बजा भी दिया। इस बात की सूचना मिलने पर कृष्ण नेमिनाथ की अपरिमित शक्ति से शंकित हो उठे और उनके साथ शक्ति-परीक्षण की इच्छा व्यक्त की। नेमिनाथ ने द्वन्द्वयुद्ध के स्थान पर दूसरे की भुजा झुका कर शक्ति-परीक्षण करने का निर्णय किया। नेमि ने सरलता से कृष्ण की भुजा झुका दी, जबकि कृष्ण नेमि की भुजा किंचित् भी झुका न सके। उनकी इस अपार शक्ति से भयभीत कृष्ण को बलराम ने बताया कि अत्यन्त शक्तिशाली होने के बाद भी नेमि स्वभाव से शान्त एवं राज्यलिप्सा से सर्वथा मुक्त हैं। उसी समय यह भी आकाशवाणी हुई कि नेमि भविष्य में दीक्षा ग्रहण करेंगे और तीर्थंकर होंगे।२८ कुम्भरिया के उकेरन में केवल कृष्ण की आयुधशाला शिल्पांकित है, जिसमें शंख, चक्र, गदा और खड्ग जैसे आयुध दिखाये गये हैं। समीप ही नेमिनाथ को पांचजन्य शंख बजाते दिखाया गया है। आकृति के नीचे 'श्रीनेमि' लिखा है। कृष्ण की आयुधशाला के समीप ही वार्तालाप की मुद्रा में वसुदेव-देवकी की आकृतियाँ बनी हैं। विमलवसही की देवकुलिका सं. १० के वितान पर कृष्ण की आयुधशाला में नेमिनाथ और कृष्ण के मध्य हुए शक्ति-परीक्षण तथा कृष्ण की रानियों के साथ नेमिनाथ की जलक्रीड़ा के प्रसंग उत्कीर्ण हैं। जैन परम्परा में उल्लेख मिलता है कि नेमिनाथ को संसार के प्रति विरक्त देखकर उन्हें सांसारिक बन्धन में प्रवृत्त करने के उद्देश्य से उनके पिता समुद्रविजय ने कदाचित् कृष्ण से नेमिनाथ के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखने को कहा । विवाह-हेतु सहमत कराने के उद्देश्य से कृष्ण अपनी पत्नियों के साथ नेमिनाथ को जलक्रीड़ा के लिए ले गये।२९ दृश्य में कृष्ण और उनकी पाँच रानियों को नेमिनाथ के साथ जलक्रीड़ा करते हुए दिखाया गया है। शक्ति-परीक्षण के अंकन में नेमिनाथ को आयुधशाला में आते हुए तथा कृष्ण को सिंहासन पर विराजमान दिखाया गया है। कृष्ण और नेमि के हाथ अभिवादन की मुद्रा में उठे हैं। समीप ही नेमि को कृष्ण की कौमोदकी गदा उठाते हुए दिखाया गया है। आगे कृष्ण दाहिने हाथ से नेमि की भुजा झुकाने का असफल प्रयास करते हुए निरूपित हैं। तत्पश्चात् कृष्ण दोनों हाथों से नेमिनाथ की भुजा झुकाने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी ओर कृष्ण की सीधी फैली हुई भुजा को नेमि केवल एक ही हाथ से सरलता-पूर्वक झुकाते हुए दिखाये गये है। कृष्ण का नीचे झुका हुआ हाथ नेमि की विजय का संकेत है इस अंकन के बाद नेमि को पांचजन्य शंख बजाते हुए और शार्ङ्ग धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए दिखाया गया है। प्रत्यंचा चढ़ाने से धनुष दो हिस्सों में खण्डित हो गया है। आगे कृष्ण और बलराम के वार्तालाप के प्रसंग उत्कीर्ण हैं, जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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