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________________ 64 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 एक सिंह के साथ युद्धरत भी दिखाया गया है। नीचे 'त्रिपृष्ठ वासुदेव' लिखा है। आगे त्रिपृष्ठ के जीवन का नरक में प्राप्त होनेवाली विभिन्न यातनाओं का अंकन है, जिसके नीचे 'त्रिपृष्ठ नरकवास' उत्कीर्ण है। इस अंकन में बैठी हुई एक आकृति के सिर पर दो आकृतियों को आरी जैसी वस्तु चलाते हुए दिखाया गया है। दो अन्य आकृतियों को भी एक व्यक्ति पर प्रहार करते हुए दिखाया गया है। ___कुम्भरिया के शान्तिनाथ मन्दिर की पश्चिमी भूमिका के वितान पर भी महावीर के जीवनदृश्य द्रष्टव्य है।२७ बाहर से प्रथम आयत में महावीर के पूर्वभवों का अंकन है, जिसमें विश्वभूति के जीवन की घटना का उत्कीर्णन है। दृश्य में एक गाय का शृंग पकड़े हुए उत्कीर्ण विश्वभूति के नीचे 'विश्वभूति' लिखा है। समीप ही एक अन्य गाय और पुरुष-आकृतियाँ बनी है, जो विशाखनन्दिन् एवं उसके सेवकों की हैं। आगे विश्वभूति के जीव को देवता रूप में दिखाया गया है। देवता के समक्ष हल और मूसलधारी बलदेव अचल की आकृति है, जो त्रिपृष्ठ के बड़े भाई थे। पश्चिम की ओर त्रिपृष्ठ की कथा उत्कीर्ण है। एक कायोत्सर्ग-आकृति के समीप सिंह और त्रिपृष्ठ की आकृतियाँ बनी हैं, जो सिंह और त्रिपृष्ठ के युद्ध का चित्रण है। आगे त्रिपृष्ठ और शय्यापालक की आकृतियाँ हैं। त्रिपृष्ठ को नमस्कार-मुद्रा में खड़े शय्यापालक पर प्रहार करते हए दिखाया गया है। यह शय्यापालक को दण्डित करने का अंकन है। समीप ही एक नर्तकी एवं वाद्य-वादन करती दो आकृतियाँ भी उत्कीर्ण हैं, जो पूरे दृश्य को कथानुरूप जीवन्त कर देती हैं। विमलवसही के गलियारे में गुम्बदी छत पर एक के ऊपर एक दो पट्टे उत्कीर्ण है। ऊपरी पट्ट पर आर्द्रकुमार (महावीर के शिष्य) द्वारा एक गज को प्रतिबोध कराने की कथा उत्कीर्ण है। इस अंकन के बाईं ओर एक सिंह को त्रिपृष्ठ से लड़ते हुए दिखाया गया है। __ कुम्भरिया के महावीर-मन्दिर, विमलवसही एवं लूणवसही के वितानों पर कृष्ण के जीवन से सम्बद्ध दृश्य देखे जा सकते हैं। कुम्भरिया में नेमिनाथ के जीवनदृश्यों के प्रसंग में कृष्ण की आयुधशाला एवं नेमि और कृष्ण के मध्य हुए शक्ति-परीक्षण के दृश्य उत्कीर्ण हैं । (जैन परम्परानुसार कृष्ण २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ के चचेरे भाई थे)। जैन परम्परा में उल्लेख मिलता है कि एक बार भ्रमण करते समय नेमिनाथ कृष्ण की आयुधशाला में पहुँचे, जहाँ उन्होंने वासुदेव (कृष्ण) के चक्र, धनुष, गदा और खड्ग जैसे आयुधों को देखा। कौतूहलवश जैसे ही वे शंख उठाने के लिए उद्यत हुए, आयुधशाला के रक्षक चारुकृष्ण ने उन्हें प्रणाम किया और चुनौती भरे शब्दों में कहा : 'यद्यपि आप हरि (कृष्ण) के भाई है, तथापि शंख बजाना तो दूर, आप इसे उठा भी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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