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________________ Vaishali Institute Research Bulletin No.8 नेमि की अपूर्व शक्ति के प्रति कृष्ण की चिन्ता और बलराम द्वारा कृष्ण को इस ओर से आश्वस्त कराने के भाव को सुन्दर ढंग से व्यक्त करता है। विमलवसही की देवकुलिका ३३ (मूलतः देवकुलिका २९) पर कृष्ण द्वारा कालियमर्दन का सुन्दर अंकन हुआ है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि एक बार और बलराम मल्लयुद्ध-प्रतियोगिता देखने के लिए मथुरा जा रहे थे। मार्ग में कृष्ण स्नान करने के आशय से कालिन्दी(यमुना) नदी में उतरे, जहाँ कालियनाग ने उनपर आक्रमण किया। कृष्ण ने उसे पकड़ लिया और उसकी नासिका में सनालपद्म डालकर उसका दमन किया।३० कालियमर्दन के सम्बन्ध में जैन परम्परा में वर्णित कथा महाभारत और अन्य ब्राह्मण-ग्रन्थों की कथा से सर्वथा भिन्न है। ब्राह्मण परम्परानुसार कन्दुकक्रीड़ा के समय जब गेंद यमुना में चली गई, तब उसे निकालने के लिए कृष्ण यमुना में कूदे थे। वहीं उनकी मुठभेड़ कालिय सर्प से हुई, जिसका उन्होंने मर्दन किया । दृश्यावली के मध्य में बने एक वृत्त में कालिय को नर-नाग-विग्रह में दिखाया गया है। तीन सर्पफणों के छत्रवाले नाग के कोटि के नीचे का भाग सर्पाकार है, जिसे गुम्फित वृत्त के रूप में दिखाया गया है। सर्पफणों के ऊपर नाग का मर्दन करते हुए कृष्ण निरूपित हैं। नाग की नासिका सनालपद्म से कसी हुई है। करण्डमुकुट, छन्नवीर, ग्रैवेयक और कौस्तुभधारी कृष्ण के हाथ में चक्र है, जो कालिय पर प्रहार की मुद्रा में उठा है। नाग को विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कुछ इस प्रकार दिखाया गया है, मानों वह अपनी पराजय स्वीकार कर अनुग्रह की याचना कर रहा है। नाग के दोनों ओर उसकी सात पत्नियों की आकृतियाँ बनी हैं, जो कृष्ण की ओर नमस्कार-मुद्रा में कातर नेत्रों से इस प्रकार देख रही हैं, मानों अपनी पति की प्राणरक्षा की गुहार कर रही हों। वृत्त के बाहर के दृश्य में आसन पर एक पुरुषाकृति लेटी है तथा दो स्त्री-आकृतियाँ भी रूपायित हैं, जिसमें से एक लेटी आकृति का चरणचाप कर रही है, जबकि दूसरी पंखा झल रही है। यह सम्भवतः कालिय या कृष्ण एवं उनकी पत्नियों का अंकन है। आगे के दृश्य में एक स्त्री वृक्षों के मध्य खड़ी होकर दो पुरुषों के द्वन्द्व को देखती हुई उत्कीर्ण है। द्वन्द्वयुद्ध कृष्ण और चाणूर के मध्य हो रहा है। जैन परम्परा में उल्लेख मिलता है कि कालिय-मर्दन के पश्चात् जब कृष्ण मथुरा पहुँचे, तब वहाँ उन्होंने पद्मोत्तर नामक गज का संहार किया। तत्पश्चात् प्रसिद्ध मल्लयोद्धा चाणूर ने कृष्ण को चुनौती दी, पर वह पराजित हुआ।२१ ऊपर के वृत्त में कन्दुकक्रीड़ा का अंकन है, जो जैन परम्परा के विपरीत है। विमलवसही की देवकुलिका ४९ की दूसरी छत पर षोडशभुज नरसिंह की एक आकृति उत्कीर्ण है, जिसके समीप समुद्र-मन्थन की कथा उकेरी गई है। समीप ही कृष्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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