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________________ मूर्त अंकनों में जिनेतर शलाकापुरुषों के जीवनदृश्य दिलवाड़ा के विमलवसही पर द्रष्टव्य है। ज्ञातव्य है कि त्रिपृष्ठ महावीर का १८वाँ पूर्वभव था। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उल्लेख मिलता है कि एक बार प्रथम प्रतिवासुदेव अश्वग्रीव ने क्रुद्ध होकर एक सिंह को त्रिपृष्ट के पिता के खेतों में छोड़ दिया। सिंह ने अत्यधिक उपद्रव किया। त्रिपृष्ठ ने उस सिंह को पकड़कर बिना किसी शस्त्र के उसके दोनों जबड़े फाड़कर उसका अन्त कर दिया।२३ आगे भी उल्लेख है कि एक बार त्रिपृष्ठ दरबार में कुछ संगीतज्ञों के संगीत का रसास्वादन कर रहा था और उसने अपने शय्यापालकों को यह आदेश दिया कि जब उसे निद्रा आ जाय तो संगीत का कार्यक्रम बन्द कर दिया जाए। किन्तु शय्यापालक संगीत का आनन्द लेने में राजा के आदेश का पालन करना ही भूल गये। निद्रा समाप्त होने पर कार्यक्रम को पूर्ववत् चलते देखकर त्रिपृष्ठ अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने शय्यापालकों के कानों में गरम शीशा और राँगा डालकर उन्हें दण्डित किया। उपर्युक्त ग्रन्थ में एक अन्य स्थल पर उल्लेख मिलता है कि विशाखनन्दिन् (अश्वग्रीव का पूर्वभव) और विश्वभूति (त्रिपृष्ठ का पूर्वभव एवं महावीर का १६वाँ पूर्वभव) चचेरे भाई थे। विश्वभूति सदैव ही पुष्पकन्दक नामक उद्यान में खेलते थे, जिसके कारण विशाखनन्दिन् उस उद्यान में खेलने से वंचित रह जाते थे। एक दिन विशाखनन्दिन् ने छल से विश्वभूति को उद्यान से हटाकर उसमें प्रवेश किया। पुन: विश्वभूति जब वहाँ आये, तब द्वारपाल ने उन्हें उद्यान में प्रवेश से रोका और बताया कि विशाखनन्दिन् के उद्यान में होने के कारण वे उसमें प्रविष्ट नहीं हो सकते हैं। पूर्व में छल द्वारा उद्यान से हटाये जाने की बात सोचकर विश्वभूति अत्यन्त क्रुद्ध हुए। क्रुद्धावस्था में ही विश्वभूति ने एक सेब से लदे वृक्ष पर मुष्टि से प्रहार किया, फलतः वृक्ष के सभी फल नीचे गिर गये। तत्पश्चात् उन्होने सम्भूत नामक मुनि से दीक्षा ग्रहण की। एक दिन भ्रमण करते हुए वे मथुरा पहुँचे, जहाँ विशाखनन्दिन् अपने सेवकों के साथ एक समारोह में सम्मिलित होने के लिए आया था। घूमते हुए विश्वभूति विशाखनन्दिन् के खेमे के पास पहुँचे, जिन्हें देखकर विशाखनन्दिन् अत्यन्त क्रुद्ध हुआ । तत्क्षण एक गाय के धक्का मारने से विश्वभूति भूमि पर गिर पड़े, जिसे देखकर विशाखनन्दिन् ने उनका उपहास किया। विश्वभूति अपना उपहास सहन न कर सके और गाय को दोनों श्रृंगों से पकड़कर उसकी ग्रीवा घुमा दी। मरणोपरान्त विश्वभूति देवता के रूप में उत्पन्न हुए। कुम्भरिया के महावीर-मन्दिर की पश्चिमी भ्रमिका के वितान (उत्तर से दूसरा) पर महावीर के जीवनदृश्यों का अंकन है। २६ एक दृश्य में विश्वभूति को एक वृक्ष पर प्रहार करते दिखाया गया है, नीचे 'विश्वभूति केवली' उत्कीर्ण है । दक्षिण की ओर त्रिपृष्ठ को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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