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________________ 110 Vaishali Institute Research Bulletin No. 8 नागरिक गन्धिपुत्र द्वारा गाड़ीवान के और फिर गाड़ीवान द्वारा उस नागरिक के छले जाने का वर्णन हुआ है । नागरिक ने वाक्छल से एक कार्षापण में तीतर - समेत गाड़ी ले ली और पुनः गाड़ीवान ने कुलपुत्र द्वारा प्रदर्शित उपाय से दो पैली सत्तू के साथ उसकी स्त्री को भी हथिया लिया । अन्त में, मुकदमे के द्वारा दोनों में निबटारा हुआ । इस प्रकार, उक्त दोनों 'उदन्त' - संज्ञक कथाओं में गुप्तवार्त्ता की ओर संकेत किया गया है । कोशकार आप्टे महोदय ने 'उदन्त' का अर्थ 'गुप्तवार्त्ता' भी किया है । इसीलिए शब्दशास्त्रज्ञ कथाकार संघदासगणी ने उक्त दोनों कथाओं को 'उदन्त' संज्ञा से अभिहित किया है। 'वसुदेवहिण्डी' में 'आख्यानक'- संज्ञक कुल तीन कथाएँ हैं : 'लोगधम्मासंग याए महेसरदत्तक्खाणयं, (३६.३) 'चिंतयत्थविवज्जासे वसुभूईबंभणक्खाणयं' (८३.९) और ‘कयग्घाए वायसक्खाणयं' (९०.५) । पहली कथा की घटना है कि मृत पिता की सद्गति के उद्देश्य से आयोजित श्राद्ध में महेश्वरदत्त स्वयं महिषयोनि में उत्पन्न अपने पिता को ही काटकर उसके मांस से भोज का आयोजन करता है । द्वितीय आख्यानक की कथावस्तु का सार हैं कि मनुष्य सोचता कुछ और है, लेकिन हो जाता है कुछ और ही । वसुभूति खेत में धान रोपा, लेकिन देखरेख के अभाव में धान की जगह घास उग आई । उसकी रोहिणी नामक गाय का गर्भ असमय ही गिरकर नष्ट हो गया, इसलिए वह बच्चा न दे सकी । वसुभूति ब्राह्मण का बेटा सोमशर्मा नट की संगति में पड़कर नष्ट हो गया और ब्राह्मणपुत्री सोमशर्माणी किसी धूर्त के फेर में पड़कर क्वॉरेपन में ही गर्भिणी हो गई। इस प्रकार, ब्राह्मण द्वारा चिन्तित अर्थ का विपर्यास या अन्यथात्व हो गया। तीसरे, कौए के आख्यान में यह निर्देश किया गया है कि कपिंजलों ने मामा मानकर कौओं की खातिरदारी की और कृतघ्न कौए अपने भगिनों (कपिंजलों) को लांछन लगाकर चले गये । इस प्रकार, कथाकार ने चिन्तित अर्थ के विपर्यास या अन्यथात्व को संज्ञापित करनेवाली कथाओं को 'आख्यानक' नाम से उपस्थापित किया है । 'परिचय'- संज्ञक कथाएँ अपने नाम के अनुसार ही पात्र - पात्रियों के परिचय प्रस्तुत करने के लिए उपन्यस्त की गई हैं। इनमें प्रायः मूलकथा के विशिष्ट पात्रों के ही परिचय परिनिबद्ध हैं । संख्या की दृष्टि से परिचय कथाएँ कुल चौदह हैं । कथाकार ने 'चरित'- संज्ञक कथाओं में शलाकापुरुषों के चरित उपन्यस्त किये हैं। मूल 'वसुदेवचरित' के अन्तर्गत कुल ग्यारह चरितकथाएँ गुम्फित हुई हैं, जिनमें धर्म, अर्थ और काम के प्रयोजन से सम्बद्ध दृष्ट, श्रुत और अनुभूत कथाओं का वर्णन हुआ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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