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________________ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णित तीर्थंकर करते हुए दिखाया गया है। समीप ही महावीर द्वारा परित्यक्त कर्णफूल, मुकुटहार जैसे आभूषण तथा खड्ग प्रदर्शित हैं। आगे महावीर को मुखपट्टिका - युक्त किसी ब्राह्मण को दान देते दिखाया गया है। नीचे 'महावीर” एवं 'देवदूष्य ब्राह्मण' लिखा है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि दीक्षा के पूर्व महावीर द्वारा दान दिये जाने के समय एक ब्राह्मण वहाँ उपस्थित न हो सका था। दीक्षोपरान्त जब उस ब्राह्मण ने महावीर से कुछ मांगा तो वे उसे निराश न कर सके और अपने कंधे पर रखे वस्त्र (देवदूष्य) में से आधा फाड़कर उसे दे दिया । ३० आगे महावीर की तपस्या के समय उपस्थित विभिन्न उपसर्गों का विस्तृत अंकन है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में वर्णन है कि भ्रमण काल के समय एक बार महावीर शूलपाणि यक्ष के प्रतिबोध के उद्देश्य से उसके ही आयतन में रुके। रात्रि के समय तपस्यारत महावीर के सामने यक्ष ने प्रकट होकर भयंकर अट्टहास किया, गज के रूप में उनके पैरों पर भयंकर पीड़ा पहुँचाई, पिशाच के रूप में तीक्ष्ण नखों और दाँतों से उनके शरीर को नोचा, सर्प के रूप में दंश कर उनके शरीर को पीड़ा पहुँचाई | किन्तु महावीर अविचलित रहे । अन्त में यक्ष ने अपनी पराजय स्वीकार कर उनसे क्षमा-याचना की तथा वह स्थान छोड़कर चला गया। दृश्य में महावीर यक्षायतन में बैठे हैं । दक्षिण की ओर शूलपाणि यक्ष की आकृति उत्कीर्ण है । समीप ही वृश्चिक, सर्प, गज एवं सिंह की भी आकृत्तियाँ बनी है। साथ ही बाण, चक्र जैसे शस्त्र भी अंकित है जिनसे महावीर का उपसर्ग किया गया । नीचे 'महावीर उपसर्ग' लिखा है । ३१ 81 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि तपःसाधना के दूसरे वर्ष चण्डकौशिक नामक भयंकर सर्प ने ध्यानस्थ महावीर के पैरों तथा शरीर पर दंश कर उन्हें विचलित करना चाहा पर महावीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा । ग्रन्थ में यह भी उल्लेख मिलता है कि तपश्चर्या के पाँचवें वर्ष लाट देश में वहाँ के अनार्यों ने महावीर पर दण्ड, शूल, मुष्टि तथा पत्थर से प्रहार कर पीड़ा पहुँचाई । श्वान दूर से ही काटने के लिए दौड़े, पर महावीर शान्त भाव से तपस्यारत रहे । ३: चण्डकौशिक के उपसर्ग के अंकन में महावीर कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े हैं, जिनके दाहिने पार्श्व में सर्प को दंश करते दिखाया गया है; ऊपर की ओर आक्रमण की मुद्रा में एक अन्य आकृति बनी है, जो लाट देश के अनार्यों द्वारा उत्पन्न उपसर्ग का अंकन है । आगे संगमदेव के उपसर्गों का विस्तारपूर्वक अंकन हुआ है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि साधना के ११वें वर्ष में संगमदेव ने महावीर की परीक्षा लेने के आशय से एक ही रात्रि में २० उपसर्ग उपस्थित किये थे । प्रलयकारी धूल की वर्षा, वृश्चिक, नकुल, सर्प, मूषक, गज, पिशाच, सिंह, चाण्डाल आदि उपसर्गों द्वारा उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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