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________________ Vaishali Insitute Research Bulletin No. 8 भी पार्श्वनाथ के जीवनदृश्य उत्कीर्ण हैं, जो विवरण की दृष्टि से महावीर मन्दिर के समान हैं। शान्तिनाथ एवं महावीर मन्दिरों की भ्रमिका के वितानों पर जैन परम्परा के चौबीसवें एवं अन्तिम तीर्थंकर महावीर के जीवनदृश्य देखे जा सकते हैं। महावीर-मन्दिर की दृश्यावली तीन आयतों में विभक्त है, जिनमें महावीर के पूर्वभवों, जन्म, दीक्षा तथा तपस्याकाल के विभिन्न उपसर्गों का अंकन किया गया है। दसरे आयत में महावीर के पूर्वभवों का अंकन है, जिसमें नयसार (महावीर का प्रथम पूर्वभव) को तीन जैन मुनियों के साथ दिखाया गया है। मुनियों के एक हाथ में मुख-पट्टिका है तथा दूसरा हाथ अभयमुद्रा में है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख है कि कदाचित् नयसार नामक व्यक्ति ने अपने भाग का भोजन भूखे मुनियों को कराने के पश्चात् मुनिव्रत धारण कर लिया तथा मरणोपरान्त स्वर्ग में देवता के रूप में उत्पन्न हुआ। दूसरे भव में नयसार के जीव को देवता के रूप में दिखाया गया है ।२६ तीसरे भव में नयसार का जीव भरतपुत्र मरीचि हुआ। दृश्य में मरीचि की आकृति बनी है। नयसार का जीव १६वें भव में विश्वभूति नामक राजकुमार तथा १७वें भव में देवता के रूप में उत्पन्न हुआ।१८वें भव में वह प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ के रूप में जनमा । वितान पर विश्वभूति तथा त्रिपृष्ठ के जीवन की घटनाओं का अंकन किया गया है। __त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि कदाचित् विश्वभूति ने क्रुद्ध होकर एक सेव से लदे वृक्ष पर प्रहार किया, फलतः वृक्ष के सभी फल गिर गये। तत्पश्चात् उन्होंने दीक्षा ग्रहण की।२८ ग्रन्थ में यह भी उल्लेख मिलता है कि प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ ने कदाचित् बिना किसी शस्त्र के सिंह के दोनों जबड़े फाड़कर उसका वध किया था।९ दृश्य में विश्वभूति को एक वृक्ष पर प्रहार करते हुए दिखाया गया है, जिसके नीचे ‘विश्वभूति केवली' लिखा है । दक्षिण की ओर त्रिपृष्ठ को एक सिंह से युद्ध करते हुए दिखाया गया है। अपने अमानवीय कृत्य के कारण नयसार का जीव १९वें भव में नरकवासी हुआ। दृश्य में नयसार के जीव को नरक में विभिन्न प्रकार की यातनाएँ सहते हुए दिखाया गया है तथा नीचे 'त्रिपृष्ठ नरकवास' लिखा है। समीप ही एक सिंह तथा नरक की यातनाओं का अंकन है, जिसके नीचे ‘अग्नि नरकवास' लिखा है। ये दोनों दृश्य नयसार के २०वें तथा २१वें भव के हैं। आगे प्रियमित्र चक्रवर्ती, नन्दन तथा देवता की मूर्तियाँ हैं जो नयसार के जीव के २२वें, २४वें एवं २५वें भवों का अंकन है। बाहरी आयत में महावीर के जन्म तथा विवाह के दृश्य उकेरे हैं। दूसरे आयत में महावीर को दीक्षा के समय केशलुंचन करते हुए तथा इन्द्र को उनके केशों को संचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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