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________________ 82 Vaishali Insitute Research Bulletin No.8 महावीर को विभिन्न प्रकार की यातनाएँ पहुँचाई । उनपर कालचक्र भी चलाया, जिससे उनका आधा शरीर भूमिगत हो गया। दृश्य में कायोत्सर्ग में खड़े महावीर पर सर्प तथा खड्ग से प्रहार करती हुई एक आकृति बनी है। एक वृषभ को भी महावीर पर आक्रमण करते दिखाया गया है। आगे चन्दनबाला कथा उकेरी गई है। चन्दनबाला धनावह नामक सेठ की पालित पुत्री थी । एक बार चन्दनबाला पिता के पैर धो रही थी कि नीचे झुकने के कारण उसकी केशराशि खुल गयी। केशों को कीचड़ न लग जाए, इस कारण धनावह ने सहज वात्सल्य-भाव से चन्दनबाला के केशों को ऊपर उठाकर जूड़ा बाँध दिया। यह देखकर मूला (धनावह की पत्नी) के मन में संदेह उत्पन्न हो गया तथा उसने चन्दनबाला के नाश का निश्चय किया। किसी दिन धनावह के घर से बाहर जाने पर मूला ने चन्दनबाला के केश मुड़वाकर उसे एक कमरे में बन्द कर दिया। लौटने पर यह सब जानकर धनावह अत्यन्त दुःखी हुआ। धनावह ने चन्दनबाला से उड़द के बाकलों को ग्रहण करने को कहा । उसी समय भिक्षा माँगते हुए महावीर वहाँ पहुँच गये । चन्दनबाला ने उन बाकलों को भिक्षारूप में दे दिया। उसी समय आकाश में 'महादान-महादान' की देववाणी हुई और चन्दनबाला के मुण्डित मस्तक पर स्वतः लम्बी केशराशि उत्पन्न हो गयी । इन्द्र ने महावीर-सहित चन्दनबाला की वन्दना की तथा चन्दनबाला ने दीक्षा ग्रहण की।२४. वितानदृश्य में दक्षिण की ओर चन्दनबाला को सिंहासन पर बैठे धनावह का पैर धोते दिखाया गया है। धनावह उसकी केशराशि दण्ड से ऊपर उठा रहा है। नीचे 'चन्दनबाला' लिखा है। आगे चन्दनबाला कमरे में बन्द है। अगले दृश्य में महावीर को भिक्षा देती हुई चन्दनबाला की आकृति के नीचे ‘चन्दनबाला' तथा 'महावीर' अभिलिखित है। समीप ही नमस्कार-मुद्रा में इन्द्र की आकृति भी उकेरी है। आगे महावीर की कायोत्सर्गमुद्रा की आकृति बनी है। शान्तिनाथ-मन्दिर की दृश्यावली चार आयतों में विभाजित है। बाहरी आयत में महावीर के पूर्वभवों तथा च्यवन एवं जन्म के दृश्य हैं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित में उल्लेख मिलता है कि कदाचित् कोई देव महावीर की परीक्षा लेने के उद्देश्य से क्रीड़ास्थल पर आये । उस समय की क्रीड़ा में महावीर किसी वृक्ष को लक्ष्य बनाकर उसकी ओर दौड़ते थे और उस वृक्ष पर चढ़कर नीचे उतरते थे। सर्वप्रथम नीचे उतरनेवाला बालक विजयी माना जाता था। तत्पश्चात् विजित बालक पराजित बालक के कन्धों पर बैठकर दौड़ आरम्भ होने के स्थान पर जाता था। देव ने विषधर सर्प का रूप धारण किया तथा लक्ष्यभूत वृक्ष से लिपट गया। सभी बालक डर गये, पर महावीर ने निर्भय होकर सर्प को एक ओर फेंक दिया। देवता ने बालक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014012
Book TitleProceedings and papers of National Seminar on Jainology
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYugalkishor Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1992
Total Pages286
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size16 MB
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