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________________ 236 Multi-dimensional Application of Anekāntavāda द्रव्यार्थिक नय है और उन्हीं वचनों के विशेष प्रस्तार/विस्तार की मूल प्ररूपणा पर्यायार्थिक नय है। इसके अतिरिक्त जितने भी वचन विस्तार हैं वे सभी इन नयों के भेद-प्रभेद हैं। (सम्मइ० १/३, धव० १/१, श्लो० वा ४/१) ___ "सो च्चिय एक्को धम्मो वाचयसद्दो वि तस्स धम्मस्स । जं जाणदि तं गाणं, ते तिण्णि वि णय विसेसा य४० ।। (i) वस्तु का एक धर्म/अर्थ, (ii) धर्म का वाचक शब्द और (iii) उस धर्म को जो जानता है, ऐसा ज्ञान ये तीन नय भी हैं। धवलाकार ने कहा- 'त पि कधं णठवदे।" यह कैसे जाना जाता है कि नय निश्चय और व्यवहार, द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ही है, अन्य तीसरा नय नहीं है? इसका उत्तर दिया कि- ये दो ही हैं- संग्रह और असंग्रह, सामान्य और विशेष को छोड़कर किसी अन्य नय का विषयभूत पदार्थ नहीं है। सम्मइ सुत्त (३) में 'संगह-विसेस-पत्थार-मूलवागरणी" संग्रह/सामान्य और विशेष में ही सभी नयों का समावेश किया गया है। क्योंकि तीर्थंकरों के वचन (i) सामान्यात्मक और (ii) विशेषात्मक हैं। द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद हैं- (i) नैगम, (ii) संग्रह और (iii) व्यवहार । पर्यायार्थिक नय के चार भेद हैं - (i) ऋजुसूत्र, (ii) शब्द, (iii) समभिरूढ़ और (iv) एवंभूत । उपनय - सब्भूदमसब्भूदं उवयरियं चेव दुविह सब्भूवं । तिविहं पि असबभूवं उवयरियं जाण तिविहं पि१।। (i) सद्भूत (ii) असद्भूत और (iii) उपचरित ये तीन उपनय हैं। सद्भूत नय दो प्रकार का है और असद्भूतनय एवं उपचरित नय के तीन-तीन भेद हैं। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र/शब्द और समभिरूढ़ ये सात नय हैं तथा द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के मिलाने से नय के नौ भेद भी हो गए। द्रव्यार्थिक के दश, पर्यायार्थिक नय के छ:, नैगम नय के तीन, संग्रह नय के दो, व्यवहार के दो, ऋजुसूत्र के दो । शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत एक-एक हैं। द्रव्य और पर्याय इनका विषय होता है। ये वस्तु अर्थ की दो दृष्टियाँ हैं । द्रव्यार्थिक दृष्टि से नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव, मूर्त, अमूर्त, संसारी मुक्त या ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाला पर्याय विशेषों में विभक्त जीव सामान्य के भी दर्शन होते हैं। पर्यायार्थिक में यही अलग अलग रूप में देखने में आते हैं। द्रव्यार्थिकनय-अनेकान्त की शुद्ध दृष्टि __ "पज्जय-गउणं किच्चा दव्वं पि य जो हु गिण्हइ लोए। सो दव्वत्थिय भणिओ विवरीओ पज्जयात्थिणओ४२ ।।" जो पर्याय को गौण करके द्रव्य का ग्रहण करता है वह द्रव्यार्थिक नय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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