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________________ अनेकान्त: स्वरूप और विश्लेषण 235 नय-भेद वस्तु के जितने गुण हैं, जितने धर्म हैं और जितनी पर्याय हैं, उतने ही निर्णयात्मक दृष्टिकोण हैं। नयवाद के आधार पर वस्तु के किसी भी धर्म, गुण एवं पर्याय पर विचार किया जा सकता है। क्योंकि अनेकान्त में अनेक धर्मों का समन्वय किया जाता है, उसको ग्रहण किया जाता है, फिर नय की निर्णयात्मक शक्ति का प्रयोग किया जाता है। जैसा कि पूर्व में भी प्रतिपादित किया गया कि नयों के बिना लोक व्यवहार नहीं चलता है इसलिए सिद्धसेन को कहना पड़ा कि जितने भी वचन मार्ग हैं उतने ही नयवाद हैं और जितने नयवाद हैं, उतने ही विचारक हैं। नयचक्र में माइल्लधवल ने नयों के भेदों को इस प्रकार व्यक्त किया है। दो चेव य मूलणया भणिया दव्वत्थ-पज्जयत्थणया। अण्णे असंखसंखा ते तब्भेया मुणेयव्वा ॥ मूल रूप से द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो ही नय हैं, इसके अतिरिक्त संख्यात और असंख्यात भी नय हैं। सिद्धसेन ने भी यही कहा - दव्वट्ठियो य पज्जवणओ य सेसा वियप्पा सिं३९।" द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ये दो नय हैं, शेष इन्हीं के विकल्प हैं । कुन्दकुन्द ने भी द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय का नियमसार में विवेचन किया है। विशेषावश्यक, कषाय पाहुड, धवला, महाधवला, स्याद्वादमंजरी, नयचक्र आदि ग्रन्थों में दो नयों को किसी न किसी रूप में आधार बनाया गया। आगम, सिद्धान्त ग्रन्थों के अनन्तर न्याय के ग्रन्थों में इन नयों को किसी न किसी रूप में प्रयुक्त वस्तु अर्थ का विश्लेषण किया गया, स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त की समीक्षा की गई। आचार्य कुन्दकुन्द का समग्र चिन्तन स्वसमय और परसमय के अतिरिक्त निश्चयनय और व्यवहारनय की अनेकान्तात्मक दृष्टि का विवेचन करता है तथा धार्मिक चिन्तन, सामाजिक चिन्तन, लौकिक और पारमार्थिक चिन्तन, संसार-मोक्षादि का चिन्तन निश्चय और व्यवहार की अनेकान्तात्मक धुरी पर घूमता हुआ सर्वजन हिताय, सर्वजनसुखाय, सर्वसमभाव के आदर्श को सर्वत्र परिलक्षित करता है। जैसा कि आचार्य सिद्धसेन ने भी कहा है णिच्छय-ववहार-णया, मूलिमभेया णयाण सव्वाणं। णिच्छय-साहणहेउं, पज्जयदव्वत्थियं मुणह ।। सब नयों में मूल नय निश्चय और व्यवहारनय हैं। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक निश्चय के साधन हैं, हेतु हैं। तीर्थंकरों के वचनों के सामान्य-संग्रह प्रस्तार की मूल प्ररूपणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
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