SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 234 Multi-dimensional Application of Anekäntavāda अर्थात् सधर्मा दृष्टान्त/सपक्ष के साथ ही साधर्म्य से जो बिना किसी विरोध के स्याद्वाद रूप परमागम में विभक्त अर्थ विशेष का व्यंजक होता है वह नय है। इसका अपने साध्य के साथ अविनाभाव सम्बन्ध रहता है। स्याद्वादमंजरी में उसे सुनय कहा है जो अनन्त विशिष्ट वस्तु में से किसी एक धर्म को वक्ता के अभिप्राय को समझकर ग्रहण करता है। इस नय के द्वारा इतर अंशों का अपलाप नहीं किया जाता है, किन्तु उनमें उदासीनता ही धारण की जाती है। इतर अंशों का अपलाप करने वाला और अपने ही गृहीत अंश की पुष्टि करने वाला सुनय नहीं हो सकता, वह तो दुर्नय है। सुनय तो अनेकान्तात्मक अर्थ को ग्रहण करता है। प्रमाण से निश्चित एक अंश-नय __ "प्रमाण प्रतिपत्रार्थैकदेश परामर्शो नय:३३।" ___ अर्थात् प्रमाण से निश्चित किए गए अर्थ का एक देश परामर्श/ ज्ञान करने वाला नय है। प्रमाण के आश्रय से युक्त तथा उसके आश्रय से होने वाले ज्ञाता के भिन्न-भिन्न अभिप्रायों के आधीन हुए पदार्थ विशेषों के प्ररूपण में समर्थ नय है। ऐसे प्रणिधान प्रयोग/ व्यवहार स्वरूप प्रयोक्ता का नाम नय है। क्योंकि नय में प्रमाण प्रकाशित, प्रमाण प्रतिपादित, प्रमाण संगृहीत वस्तु का, साधर्मी का विरोध न करते हुए साधर्य से ही साध्य की सिद्धि की जाती है। यह सिद्धि अनेकान्त से प्रकाशित, अनेकान्त पर घटित होती है। श्रुत का विकल्प-नय "श्रुत मूला नया: सिद्धा:३४' श्रृत को मूल आधार बनाकर भी नय की सिद्धि की जा सकती है। इसलिए 'श्रुतविकल्पो नयः" श्रुत का विकल्प भी नय है। नीयते गम्यते येन श्रुतार्थांशो नयो हि स:३५। उससे श्रुतांश को ग्रहण किया जाता है, उसके द्वारा वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन किया है। सुदणाण-भावणाए, णाणं मत्तंड-किरण-उज्जोओ। चंदुज्जलं चरित्तं विणयवसचित्तं हवेदि भव्वाण२६।। श्रुतज्ञान की भावना से भव्य जीवों के लिए ज्ञान सूर्य की किरणों के समान उद्योत रूप है। प्रकाश फैलाने वाला है, चरित्र चन्द्रमा के समान उज्ज्वल है और चित्त अपने वश में होता है। "विविहत्थेहिं अणंतं संखेज्जं अक्खराण गणणाए।३७ । श्रुत विविध प्रकार के अर्थों की अपेक्षा से/विवक्षा से/विकल्प से परिपूर्ण हैं, इसलिए अनन्त हैं और अक्षरों की गणना से संख्यात हैं। ऐसी अनेकान्त की व्यवस्था है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014009
Book TitleMultidimensional Application of Anekantavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Shreeprakash Pandey, Bhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages552
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy