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________________ Homage to Valsalt को पीजों की प्रचुरता। और उसने देख सात हजार सात मंजिल पाले मकान, सधी की हिलोर से भरपूर / उसने वैशाली की एक और प्रधान चीज का वर्णन किया। यह पी उस नगर की सुप्रसिद्ध बेल्या 'अम्बपाली' जो बहुत धनदौलते की मालकिन पी भी. जिसने उस पहर में ऐसे बहुत से जनहितकार्य किये थे, जिनको देखने के वास्ते विभिन्न देशों के लोग वहां जाते थे। राजनीति-तन्त्र में वैशाली की महत्ता एक बहुत ही प्राचीन घटना में वर्णित है / वह घटना बौद्ध कहानी 'मद्दसाल जातक' में लिखी हुई है। उससे मालूम होता है कि वैशाली के प्रत्येक राजा को राजतिलकोत्सव के समय नहाने के लिए वहां के एक तालाब के पानी की जरूरत पढ़ती थी। यह पानी नहीं होने से राजाओं का 'अभिषेक पर्व' सम्पूर्ण नहीं माना जाता था। इस पानी को लिच्छवि राजाओं के अतिरिक्त दूसरा कोई छू भी नहीं सकता था। उसकी रक्षा के लिए कड़ा पहरा पड़ता था। ऊपर लोहे की जाली लगी थी, जिससे उड़ते पक्षी तक उसमें चोंच न डुबो सकते थे। एक बार श्रावस्ती के राजसेनापति बन्धुल की स्त्री मल्लिका ने अपनी गर्भावस्था में यह इच्छा प्रकट की कि मैं वैशाली नगर की अभिषेक-मङ्गल-पुष्करिणी में नहाकर उसका पानी पीऊंगी। वेसालीनगरे गनराजकुलानाम् अभिषेकमङ्गलपोक्खरनीम् ओतरित्वा नहाल्वा पानीयं पातुम् अहिलसामीति / -जातक, 4, पृ० 148 सेनापति अपनी स्त्री को रथ पर चढ़ा कर एक हजार तीरन्दाज फौज के साथ बहुत ही हल्ला मचाकर नगर के द्वार पर उपस्थित हुआ। वैशाली नगर की रक्षा करने वाले सिपाहियों ने उसे नगर-प्रवेश के लिए मना किया और अन्त में लड़ाई की, जिसमें वे मारे गये / बन्धूल मल्ल ने जाली को छेद कर अपनी स्त्री के साथ पोखर में स्नान किया और जी मर पानी पीकर लौट गया। .. इस मङ्गलपुष्करिणी को छोड़ कर वैशाली में और भी बहुत सी देखने लायक चीजें थों, यथा अगणित चैत्यगृह या पूजास्थान / इनमें अधिक मशहूर थे 'उदेन चैत्य', 'गोतमक चैत्य', 'सत्तम्बक चैत्य', 'बहुपुत्तक चैत्य', 'सारन्दद चैत्य', 'चापाल चैत्य', 'कपिना चैत्य', मर्कटह्रदतीर चैत्य' और 'मुकुटबन्धन चैत्य' / ये सब चैत्य ज्यादातर यक्ष देवताओं की पूजा के मन्दिर थे / एक-एक मन्दिर की अलग-अलग कहानियां थीं। उदाहरणार्थ 'मुकुटबन्धन चैत्य' में राजाओं और जनसभा के प्रधान का अभिषेक वा पट्टबन्धन उत्सव मनाया जाता था। __एक दिन बुद्धदेव ने 'चापाल चैत्य' में बैठ कर अपने प्रिय शिष्य आनन्द से कहा था'कितनी रमणीय है आनन्द ! यह वैशाली। कितने सुन्दर और मन को हरने वाले हैं ये चैत्य'उदेन चैत्य', 'गोतमक चैत्य', 'सत्तम्बक चैत्य', 'बहुपुत्तक चैत्य', 'सारन्दद चैत्य' और 'चापाल चैत्य'। जब तक वज्जी अपनी भक्ति और श्रद्धा अटूट रख कर इन वज्जि-चैत्यों की पूजाअर्चना पर कायम रहेंगे और इनकी रक्षा में तत्पर रहेंगे, तब तक उनकी तरक्की ही होगी, हानि नहीं।"
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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