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________________ चाली की महत्ता..... और यही वैशाली थी एक दिन सारी दुनिया के अन्दर गणतन्त्र की सबसे पुरानी और सुप्रसिद्ध केनस्थली। -रामायण में यह नगर विधाजपा 'उत्तमपुरी' के नाम से पणित है। प्रति राणा इक्वाकु के पुत्र राणा विद्याल ने इस नगर का निर्माण किया था। उनकी माता का नाम अलम्बुषा था / यथा इक्ष्वाकोस्तु नरव्याघ्र पुत्रः परमधार्मिकः / अलम्बुषायामुत्पन्नो विशाल इति विश्रुतः / तेन चासीदिहस्थाने विशालेति पुरी कृता / रामायण, बालकाण्ड, सर्ग 47, श्लोक 11-12 विष्णुपुराण के मत में राजा विशाल इक्ष्वाकु-वंश के तृणविन्दु राजा के पुत्र थे। इस पौराणिक इतिहास की कहानी 'राजा विशाल का गढ़' इस नाम के अन्दर प्रतिध्वनित हो रही है। श्रीरामचन्द्रजी जब इस नगर में उपस्थित हुए, तब इस प्रदेश के राजा थे सुमति / ऋषि विश्वामित्र के कथनानुसार वैशाली के सभी राजा दीर्घायु, महात्मा, वीर्यवान और सुधार्मिक थे। लेकिन अगर हमलोग रामायण के वर्णन को कल्पित समझ कर न मानें, तब जैनधर्म के यकीन करानेवाले इतिहास के पन्ने हमारे सामने खड़े हैं। क्योंकि इसी वैशाली के नजदीक 'कुण्डग्राम' में जैनधर्म के आखिरी तीर्थङ्कर महावीर ने जन्म लिया था। इसलिए महावीर का एक और नाम था 'वैशालिक' और उनकी जननी त्रिशला का दूसरा नाम था 'विशाला' / ... लेकिन ब्राह्मणधर्म और जैनधर्म के अतिरिक्ति वैशाली विशेष प्रकार से भगवान बुद्ध और बौद्धधर्म के इतिहास के साथ संयुक्त है / पहले यह मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और अन्य बड़े-बड़े शहरों के साथ सीधे राजपथ के द्वारा मिली हुई थी और बुद्धदेव अक्सर तिब्बती 'विनयग्रन्थ' में इस नगर का निम्नलिखित वर्णन हमलोग पाते हैं- "वैशाली शहर तीन खास महल्लों में विभक्त था। पहले महल्ले में सात हजार मकान थे, जिनकी गुम्बजे सोने से ढकी हुई थीं; बीच के महल्ले में चौदह हजार मकान थे, जिनकी गुम्बजें चांदी से मढ़ी हुई थी और आखिरी महल्ले में इक्कीस हजार मकान थे, जिनकी गुम्बजे तांबे से मढ़ी हुई थीं। इनमें उच्च, मध्य और निम्न वर्गों के नागरिक अपनी श्रेणी के अनुसार वास करते थे"। "हीनयान" लोगों के "विनय" ग्रन्थ "महावग्ग" में राजगृह के व्यापारी के वैशाली ने राजगृह में लौटकर राजा को वैशाली का वृत्तान्त बतलाया। वह देख गया था वैशाली में असंख्य जनता की रहन-सहन, उसके नगरवासियों की भारी धनदौलत, और खाने-पीने
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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