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________________ / वैशाली की महत्ता 1819 ....... परन्तु प्राचीन वैशाली नगर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह पी सुप्रसिद्ध 'अगण' या अनुकुल' की प्रधान राजधानी / इस अष्टकुल के अन्दर प्रधान वंश थे 'विदेहगण', 'बज्जिगण' और इतिहासविण्यात 'लिग्छवि-बंध' / इस लिच्छवि-वंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। म. विन्सेण्ट आधर स्मिथ के मतानुसार लिच्छवि लोग थे मंगोल जाति की एक शाखा-तिब्बती और हिमालयवासी जातियों के रिस्तेदार / डा० सतीशचन्द्र विद्याभूषण उन्हें पारसवंशीय मानते थे। बील ने उन्हें 'यूची' खानदान का माना है। धर्मशास्त्र के महान् नेता भगवान् मनु ने लिच्छवियों को 'व्रात्य क्षत्रिय' कहा है, क्योंकि लिच्छवियों को धर्मशास्त्रानुमोदित समय पर अपने व्रत संस्कार करने की परवाह नहीं थी। आधुनिक भारतीय विद्वान् लिच्छवियों को 'आर्य मानते हैं। लिच्छवियों की नसल कुछ भी हो, उन लोगों का राजनीति-तन्त्र गणतन्त्र या प्रजातन्त्र था। उन लोगों का शासनतन्त्र कुछ निर्वाचित प्रधान सदस्यों के हाथ में था। ये प्रधान सदस्य 'वोट' द्वारा निर्वाचित होते थे। शासन-सभा का सभापयि, जो 'महोत्तरक' कहलाता था, निर्वाचित होता था। जैनधर्म के ऐतिहासिक वर्णन से मालूम होता है कि मगध के राजा बिम्बिसार के लड़के अजातशत्रु की माता 'चेल्लना' लिच्छवि-वंश के चेटक की कन्या थी। यही चेटक उस समय की वैशाली-समा का सभापति था। महावीर की माता त्रिशला भी इसी की बहन थी। . अजातशत्रु के समय में वैशाली मगध के अधीन हो गयी। बात ऐसी हुई कि गंगा नदी के तीर पर एक बन्दरगाह पर लिच्छवियों और मगधराज में झगड़ा हुआ। इस नदी के घाट का एक हिस्सा था लिच्छवियों के कब्जे में और दूसरा था मगधराज के कब्जे में। इस बन्दरगाह-सम्बन्धी झगड़े के होने पर अजातशत्रु ने पहले अपने मन्त्री वर्षकार को भेज वैशाली में फूट डलवायी और पोछे विशाल फौज भेज कर उसे अपने कब्जे में कर लिया। इस प्रकार वह अपनी मातामही के राज का मालिक बन गया। बौद्धधर्म के इतिहास और विभिन्न कहानियों में लिच्छवि-वंश के बहुत विशिष्ट और श्रेष्ठ लोगों का पता चलता है। उनमें कई नाम बहुत मशहूर हैं, यथा महालि, महानाम, सेनापति सिंह, गोशृङ्गी, और भद्द / लिच्छवि गणतन्त्र के सेनापति सिंह पहले जैन थे; बाद में उन्होंने बौद्धधर्म ग्रहण कर लिया। वैशाली नगर के उत्तर-पूर्व की तरफ 'महावन' या 'शालवन' नामक एक आश्रम था। उस आश्रम के अधिपति 'गोशृङ्गी' ने बुद्धदेव को उसका दान किया था। इस आश्रम में एक दोमंजिला 'कूटागारशाला' बनवायी गयी और बुद्धदेव अक्सर इस कूटागारशाला में आकर रहते थे। - एक और बड़ा दान बौद्धधर्म के इतिहास में प्रसिद्ध हुआ है। यह है सुप्रसिद्ध वेश्या अम्बपाली का सुविख्यात 'आम्रकानन'-वैशाली नगर के बिलकुल पास में स्थित / एक दिन
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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