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________________ 414 Homage to Vaisali ने इस सूत्र का एक संक्षिप्त अनुवाद भी किया था (204-317 ई.)। ये दोनों अनुवाद अब अप्राप्य हैं। उसके बाद तामओ-आन के शिष्य सेग-जुई ने 'विमलकीति निर्देश सूत्र की भूमिका' नाम से एक स्वतंत्र ग्रंथ की रचना की। तत्पश्चात् इस सूत्र का नवम चीनी भनुवाद भारतीय बौद्ध विद्धान गीतमित्र ने किया। यह अनुवाद भी अब अप्राप्य है। इस सूत्र का दशम चीनी अनुवाद भारतीय बौद्ध विद्वान् कुमारजीव ने 405 ई. में किया था / यह अनुवाद समस्त चीनी अनुवादों में सबसे अधिक लोकप्रिय है / कुमारजीव ने अपने अनुवाद में यथास्थान स्वतन्त्र टिप्पणियां भी दी हैं। इस काम में 1200 बौद्ध विद्वानों ने उसकी सहायता की थी (तंशो-इस्सैक्यो, क्रम संख्या 475, प्रमुख भिक्षुओं के संस्मरण, 'चीनी बौद्ध धर्म का इतिहास', पृष्ठ 67-69) / विमलकीर्ति के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कुमारजीव ने लिखा है-“विमलकीति का चरित्र बतलाता है कि कैसे हम लोगों के साथ एकाकार हो सकते हैं। किस प्रकार एक साथ हम पापियों और पुण्यात्माओं के मित्र बन सकते हैं। रिवार के साथ रहते हुए भी किस प्रकार संन्यास धर्म का पालन किया जा सकता है / गृहस्थ होकर भी विमलकीर्ति समस्त नैतिक नियमों का पालन करते थे। उनके पत्नी बोर पुत्र थे, फिर भी वे सांसारिक जीवन से अपने को बिल्कुल अनासक्त रखते थे। हीरकजटित आभूषणों का प्रयोग करते थे, फिर भी आध्यात्मिक विमा से वे विभूषित थे। द्यूतशालाओं में जाकर जुलाड़ियों को सत्पथ पर लाने का प्रयास करते थे। सांसारिक विद्याओं का गम्भीर ज्ञान रहने पर भी बुद्ध द्वारा निर्देशित मार्ग ही उनके लिए अत्यधिक आनन्ददायक था। सभी प्रकार की वृत्तियों बोर व्यवसायों से वे लाभ उठाते थे, किन्तु उनके प्रति अनासक्ति का भाव रखते थे। विद्यालयों में जाकर युवकों को सदाचार का उपदेश देते थे। मद्य-विक्रेताओं की दुकान पर जाकर उनको पवित्र पदार्थों की खोज के लिए प्रेरित करते थे / षनिकों के बीच निरभिमानता का उपदेश देते थे। महामंत्रियों को न्याय का, राजकुमारों को मातृ-पितृभक्ति का और राजदरबारियों को ईमानदारी का संदेश देते थे।" कुमारजीव के बाद उत्तरी चीन के लिन-लु जिले के निवासी उसके शिष्य ताओ-गुंग ने इस सूत्र की एक टीका लिखी। उसके बाद उसके दूसरे शिष्य ताओ-सेंग ने इस सूत्र की दूसरी टीका लिखी। यह टीका तीन खण्डों में विभक्त है और अभी सुरक्षित है। ताओ-सेंग एक अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् था और वहां के राजा द्वारा कुमारजीव की सहायता के लिए नियुक्त किया गया था ('चीनी बौद्धधर्म का इतिहास', पृ० 61, प्रमुख भिक्षुओं के संस्मरण)। चांग-आन का निवासी सेंग-चाओ 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' के एक अनुवाद को पढ़कर इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह गृह त्याग कर भिक्षु बन गया और 20 वर्षों की अवस्था में एक महान बौद्ध दार्शनिक के रूप में विख्यात हुआ। चांग-आन के तत्कालीन राजा याओ-हिजन के निमंत्रण पर 401 ई० में वह यहां आया था और सेंग-जुई के साथ उसको राजा ने कुमारजीव का सहायक नियुक्त किया था। सेंग-चाओ ने स्वयं 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र की प्रस्तावना' के नाम से एक स्वतन्त्र पुस्तक की रचना
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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