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________________ - 413 विमलकीति : वैशाली की एक विस्मृत विभूति नवम शताब्दी तक वहाँ एक सौ गुफाओं का निर्माण किया गया। 1900 ई० में एक तावी साधु बङ-ताई को यहां एक बड़ी गुफा में खोदते समय एक छोटी गुफा मिली, जिसमें हस्तलिखित ग्रन्थ भरे थे। 1906 ई० में पेलियो ने जब इस गुफा का निरीक्षण किया, तब वह आत्म-विभोर हो उठा। संयोग से बङ-ताई निरक्षर था और गुफा की मरम्मत के लिए उस समय उसको धन की आवश्यकता थी। इसलिए वह पेलियो को हस्तलेख देने के लिए राजी हो गया। पेलियो ने लगभग 5 महीने वहाँ रहकर 15 हजार ग्रन्यों की सूची बनाई और उनमें से 5 हजार सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ खरीदकर अपने साथ पेरिस ले गया। उसके बाद 1908 ई० में डॉ० स्टाइन यहाँ आये और 5 हजार रुपये में 24 सन्दूक हस्तलेख और 4 सन्दूक चित्र, रेशमी पट एवं अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं खरीदकर ले गये। शेष 10 हजार हस्तलेखों को चीन सरकार के आदेशानुसार पेकिंग के राष्ट्रीय पुस्तकालय में भेज दिया गया। तुन-हुआङ् से प्राप्त हस्तलेखों को जर्मन प्राध्यापक डॉ० लेन्मान, डॉ. फानले-काक, डेन विद्वान् विल्हेम टॉमस, बेलजियन विद्वान् पूसिन, जापानी विद्वान डॉ० बतनवे और फ्रान्सीसी विद्वान पेलियो ने पढ़ने का प्रयास किया। प्राध्यापक सेनार् और बायर ने खरोष्ठी लिपि में अंकित प्राकृत भाषा, डॉ. लेन्मान और डॉ. बतनवे ने ब्राह्मी लिपि में अंकित शक भाषा, प्राध्यापक गांथिओं ने सोग्दियन भाषा, प्राध्यापक सिल्वा लेवी ने तुखारी भाषा और पेलियो ने वीनी भाषा के हस्तलेखों के पढ़ने में सफलता प्राप्त की। प्राप्त हस्तलेखों में खरोष्ठी लिपि में अंकित प्राकृत भाषा, ब्राह्मी लिपि में अंकित शक भाषा, सोग्दियन भाषा, खोतानी भाषा, भोटीय भाषा और चीनी भाषा में 'विमलकीर्तिनिर्देश सूत्र' के अनेक अनुवाद मिले हैं, जिनमें सोग्दियन और खोतानी भाषाओं के खण्डांश प्रकाशित हो चुके हैं। प्रख्यात चीनी बौद्ध विद्वान् लितुआन-फु ने गुफा से प्राप्त हस्तलेखों में 'विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' की कई ऐसी टीकाओं का पता लगाया है, जिनकी व्याख्या साधारण संस्करणों से भिन्न है। इस संग्रह में 'प्रज्ञापारमिता-हृदय-सूत्र' 'विमलकीर्तिनिर्देश सूत्र' और 'सुरांगन सूत्र' की सबसे अधिक प्रतियां मिली हैं। तुन-हुआङ के गुफा मन्दिरों में विमलकीति के जीवनवृत्त से सम्बन्धित कई भित्ति-चित्र भी मिले हैं ('तुनहुआङ पेन्टिग्स')। ___विमलकीर्ति निर्देश सूत्र' का सबसे पहला चीनी अनुवाद 188 ई० में येन-फोतियाओ ने लो-यांग नगर में किया था। यह अनुवाद अब अप्राप्य है। इस सूत्र का दूसरा चीनी अनुवाद त्वे-की-न ने किया था (222-229 ई०)। यह अनुवाद अभी सुरक्षित है (तेशी-इस्सैक्यो, क्रम सं० 274) / इसका तीसरा चीनी अनुवाद हान वंश के ऊ सम्राट श्वेन कुयेन के शासनकाल में प्रख्यात यूची (शक) विद्वान् चो-चियेन (223-253 ई०) ने और चौथा चीनी अनुवाद तिन वंश के शासनकाल में प्रख्यात यूनी (शक) विद्वान् चु-फा-हु ने किया था। चु-फा-हु का मूल नाम धर्मरक्ष था और यह तुखार का रहनेवाला था। चीन में इसको तुन-हुआङ् बोधिसत्त्व के नाम से सम्बोधित किया जाता है। चु-फा-हु
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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