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________________ HANNEL pi WIRIDINE M.INDAN वैशाली की गरिमा डॉ. सुरेन्द्रनाथ दीक्षित, एम० ए०, पी-एच० डी० वैशाली का महत्त्व भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में उल्लेखनीय है / यहाँ गण। तंत्रीय शासन-प्रणाली ईसवीपूर्व सातवीं सदी में फूल-फल रही थी जब विश्व के शेष भागों में सभ्यता और संस्कृति ने आंखें भी नहीं खोली थीं। उससे सदियों पूर्व विदेहराज जनक द्वारा आयोजित जनकपुर के धनुष-यज्ञ में सम्मिलित होने के क्रम में महर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को लिये वैशाली होकर गुजरे। उस समय वैशाली के 333 राजा सुमति वैशाली राज्य के राजा थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र और दाशरथि राम एवं लक्ष्मण का भरपूर स्वागत-सत्कार किया। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि की कलासम्पन्न लेखनी ने वैशाली के वैभव और शोभा-समृद्धि का जैसा प्रभावशाली वर्णन किया है उससे उस सुदूर प्रागैतिहासिक काल में भी वैशाली की असाधारण महिमा का अनुभव किया जा सकता है / कोसल और विदेह के मध्य गंगा के उत्तरी तट पर वर्तमान वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, पूर्वो-पश्चिमी चम्पारण और नेपाल की तराई तक इस राज्य का प्रसार और प्रभुत्व था / आधुनिक इतिहासकारों का अनुमान है कि 725 ईसा-पूर्व में यहाँ राजतंत्रीय शासन-प्रणाली समाप्त हुई और गणतंत्रीय शासन-व्यवस्था का सूत्रपात हुआ। शासनसूत्र विभिन्न गणों के हाथ में आया और लोकहितकारी संघ राज्य लगभग 484 ईसा पूर्व तक फूलता-फलता रहा। इस गणराज्य का नाम वृजि संघ अथवा लिच्छवि संघ था। संघ अपने लोकहितकारी सुशासन के लिए जगद् विख्यात था। संपदा तो यहाँ इतनी थी कि वैशाली सद। गंगा के दक्षिण के विशाल मगध-साम्राज्य की आँखों की किरकिरी बनी रही। वैशाली गणराज्य (वृजिसंघ) अपने गणतांत्रिक संविधान की दृष्टि
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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