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________________ 398 Homage to Valsali से एक विलक्षण प्रयोग लगभग ढाई सौ वर्षों तक करता रहा / बौद्ध एवं जैन साहित्य में इस गणराज्य की महिमा का उल्लेख बहुत विस्तार से किया गया है। उनके अनुसार शासन संचालन के लिए एक केन्द्रीय कार्यपालिका होती थी, जिसके सदस्य राजा, उपराज, सेनापति और भाण्डागारिक होते थे। नौ गणराजाओं की समिति विदेश-विभाग के काम की देखभाल करती थी। केन्द्रीय विधान सभा "संस्था" के नाम से संबोधित होती थी। जहाँ इसका आयोजन होता था उसे "संस्थागार" कहा जाता था। इसके सदस्यों की संख्या 7707 होती थी। इन सदस्यों को "अभिषेक मंगल पुष्करिणी" में स्नान कराके अभिषिक्त किया जाता था। संघ की कार्यपालिका के अतिरिक्त एक सुसंगठित न्यायपालिका भी थी। वृजि संघ की न्यायपालिका के अनेक स्तर थे जिनमें "अष्टकुलक" सर्वोच्च था, जहाँ दण्डित अपराधी की अपील की सुनवाई भी होती थी। राजा (राष्ट्रपति) न्यायपालिका का सर्वोच्च अधिकारी होता था। वृजिसंघ की गणतंत्रात्मक व्यवस्था के आधार पर ही शास्ता गौतम बुद्ध ने अपने संघ के नियमों के निर्धारण और संगठन का सूत्रपात किया। बौद्धसंघ की सारी कार्यप्रणाली, गणतंत्रात्मक होने के कारण, आदिम समतामूलक साम्यवादी चेतना से अनुप्राणित मालूम पड़ती है। वृजिसंघ की राजधानी वैशाली थी। उस युग में वैशाली अपने अपार वैभव, कलाप्रेम और सौन्दर्य-प्रियता के लिए जगविख्यात थी। इस गणराज्य की जनता की सौन्दर्यवृत्ति के उदबोधन और परितुष्टि के लिए एक ऐसी गणिका का चुनाव होता था, जो रूपरंग, नृत्य, नाट्य और संगीत कला के प्रदर्शन में अद्वितीय हो। वह किसी एक को नहीं, जन-जन की 'प्रासादिका' हो। बुद्धकाल में वैशाली में आम्रपाली ऐसी ही एक गणिका थी, जिसकी अपूर्व रूप-सम्पदा और कला-कीर्ति पर वृजिसंघ के सौन्दर्य प्रिय युवजन तो अपना हृदय लुटाए फिरते ही थे, मगध सम्राट बिम्बिसार और शायद उनके पुत्र अजातशत्रु ने भी उसकी “कड़ी रूप ज्वाला" सौन्दर्य का उपभोग करने के लिए सम्पूर्ण मगध-राष्ट्र को दाँव पर चढ़ा दिया था / ऐसा था वह वृजिसंघ गौरव-गरिमा से मण्डित ! और उसकी राजधानी वैशाली तो सदियों तक अमित महिमा और ऐश्वर्य का केन्द्र ही नहीं बनी रही, अपितु समस्त भारत में धर्म, संस्कृति, इतिहास और राजनीति के क्षेत्र में जो व्यापक क्रांतियाँ हुई, उनमें उसकी भूमिका अत्यन्त महत्त्व की रही है / वैशाली को यह सौभाग्य प्राप्त है कि यह भारत एवं विश्व के दो महान् धर्मप्रवर्तकों-महावीर वर्द्धमान और गौतम बुद्ध की जन्मभूमि और प्रमुख कर्मभूमि रही है। महावीर वर्द्धमान का जन्म वैशाली के नितान्त निकटवर्ती बासु कुण्ड में लगभग 561 ईसा-पूर्व में हुआ। वे जैन धर्म के अन्तिम एवं चौबीसवें तीर्थकर थे। इन्होंने अपना घरबार छोड़ दिया और पास के ही महावन में कठोर तपस्या की तथा जनधर्म को अपने गहन चितन, त्याग, तपस्या और कठोर निष्ठा से पुनरुज्जीवित किया। यह धर्म बौद्ध एवं हिन्दूधर्म के साथ संघर्ष और सहयोग, उतार-चढ़ाव के साथ सदियों तक वैशाली में फूलाफला / काल-प्रवाह के क्रम से जब वैशाली प्रभावित हई तब जैनधर्म के सन्दर्भ में वैशाली का ऐतिहासिक महत्त्व नितांत धूमिल हो नहीं हो गया, सदियों तक विस्मृति के गर्भ में खोया
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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