SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 294 Homage to Vaisah .. जिस दिन पहचान जाता है उसी दिन से क्लेशमय बन्धनों से विमुक्त हो जाता है। इसको पहचानो / अपने में ही नहीं, जगत् के कोने-कोने में। सिंह-हे नातपुत्त ! मैंने आज संस्थागार में कुछ लिच्छिवियों को यह कहते सुना कि राजगृह से शाक्यश्रमण गौतम आये हैं और कल्याण के नूतन पथ का प्रदर्शन कर रहे हैं। महा.-तुम श्रमण गौतम के पास जाना चाहते हो। सिंह-यदि नातपुत्त की आज्ञा हो तो। महा-सेनापति, तुम एक ही पप पर स्थिर रहो, तो अच्छा है। श्रमण गौतम तो कर्मफल को, मुक्ति को मानते नहीं ! उनके सिद्धान्त तुम्हें विचलित कर देंगे। जब तक तुम स्वस्थ हो, तुम्हारी इन्द्रियों में शक्ति है, तब तक मेरे बताये धर्म पर आचरण करते रहो, तुम्हें शान्ति मिलेगी। जरा जाब न पीठेइ वाही छाव न वढइ, जाविदिया न हायन्ति, ताव धम्म समायरे। (संगीत ध्वनि-पट परिवर्तन) ग्रामीण-पथिक, ये श्रमण गौतम कोन थे, जिन्होंने वैशाली के सेनापति को अपनी ओर आकृष्ट किया ? पथिक-ये थे महात्मा गौतमबुद्ध, जिनके बौद्ध धर्म की ज्योति ने सारे एशिया को देदीप्यमान कर रखा है। वैशाली नगरी में तो उस समय जितने नये आदर्श, नये धर्म, उत्पन्न होते थे, सभी के लिए जगह पी। गौतमबुद्ध का नाम सुना, तो लिच्छवियों ने बड़े आग्रह के साथ उन्हें बुलाया और कहते हैं कि बुद्ध भगवान् के चरण रखते ही वैशाली में जो महामारियां छायी हुई थी, सब गायब हो गयीं। फिर तो वे अक्सर वैशाली आने लगे / वह अशोक का सिंह स्तम्भ देखतो हो। ग्रा०-वह ? हम लोग तो उसे भीमसेन की लाठी कहते हैं। ५०-माई! वह राजा अशोक का बनवाया हुआ स्तम्भ है-उसी जगह जहाँ बुद्ध भगवान् अक्सर ठहरा करते थे। और देखो यह टीसा है न / वह टीला एक स्तूप था, जिसके नीचे भगवान् बुद्ध के शरीर का एक अंश दबा कर रखा गया था। प्रा०-अच्छा ? ५०-हां भाई ! बुद्ध भगवान् को वैशाली और उसके लिच्छवि बहुत प्रिय थे। एक दिन की बात है, वैशाली के निकट महावन में भगवान् बुद्ध ध्यानावस्थित बैठे हुए थे और उनके निकट थे एक वृद्ध लिच्छवि महानाम / इतने में कुछ उच्छखल लिच्छवि युवकों का समूह गाना गाते हुए, शोर मचाते हुए आवेट के लिए वहाँ आया / (संगीत, पट परिवर्तन) महानाम–देखिये तथागत, ये उच्छङ्खल लिच्छवि युवक कितना ऊधम मचा रहे हैं। भला . इनसे क्या आशा करें कि ये तपागत के धर्म की शरण लेंगे।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy