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________________ 272 Homage to Vaisali इसलिए वेबर साहब के मतानुसार यदि 'सदानीरा' वर्तमान 'गंडक' है तो वह 'पुरानी गंडक' या 'बढ़ी गंडक नहीं हो सकती; कारण 'शतपथ' के मतानुकूल 'सदानीरा' कोथल और विदेह राज्य की सीमा है, जो हकीकत हम पुरानी गंडक में नहीं पाते। अब रही बात नयी गंडक की। इसे लोग 'शालीग्रामी' भी कहते हैं / 'नारायणी' नाम से भी यह बहुत जगहों पर विख्यात है। यह बगहा (चम्पारन) के कुछ दूर उत्तर हट कर बिहार की सरहद को छूती है तथा चम्पारण और मुजफ्फरपुर जिलों को 'सारन' से पृथक् करती हुई हाजीपुर के पास गंमा से मिलती है। जिस समय रामचन्द्र विश्वामित्र के साथ बक्सर होते हुए जनकपुर जाते हैं, रास्ते में ऋषि ने अनेक नदियों का परिचय उन्हें दिया है। जहां गंगा, सोन और कौशिकी आदि नदियों का वर्णन प्रचुर मात्र में हम 'वाल्मीकि' में पाते हैं. वहाँ 'गडक' की चचों का बिलकुल अभाव है। यद्यपि विश्वामित्र हाजीपुर के पास ही गंगा से नाव पर वर्तमान 'रामचौड़ा' पर उतरते हैं, और पास में ही गंडक नदी गंगा से मिलती है, पर परम आश्चर्य यह है कि विश्वामित्र अथवा वाल्लीकिदोनों में से किसी एक का भी ध्यान 'गंडक' की ओर नहीं जाता है। क्या इससे यह अनुमान हम कर सकते हैं कि तबतक सम्भवतः 'गंडक' का निर्माण नहीं हुआ था ? . बाद के पाली साहित्य में हम 'मही' नदी की चर्चा पाते हैं। कहीं-कहीं गंडक द्वारा वैशालिक बनिये श्रावस्ती नगर को व्यापार करने जाते थे-ऐसा भी पाठ हमें मिलता है। 'मही' को कहीं-कहीं पर 'सुखमही' और कहीं-कहीं पर 'मही-गंडक' भी कहते हैं। इसके अनेक सोत और धाराएं आज भी सारन जिले में विराजमान हैं, जो फाल-क्रम से सूखती और भरती हुई चली जाती हैं। जिस प्रकार 'पुरानी गंडक' के पश्चिम नून, कदाने और बाया, किसी जमाने में मुजफरपुर जिले की प्रसिद्ध नदियों में थीं, और आज भी उनकी रूप-रेखा पोड़े बहुत परिवर्तन के साथ ज्यों-की-त्यों मौजूद है, उसी प्रकार 'सरयू नदी के पूर्व और नयी गंडक के पश्चिम सारन जिले में घघर, बौद्धा, मही और सुखमही आदि नदियां अपनी इस जीर्ण-शीर्ण अवस्था में भी अपने प्राचीन गौरव की स्मृति में साल में एक-दो महीना आंसू की धारा बहा लिया करती हैं। अस्तु, लेखक का यह अनुमान और विचार है कि ब्राह्मण काल की 'सदानीरा' आधुनिक 'सरयू' और पुरानी गंडक के बीच अवस्थित थी। यह कोई संकुचित नदी नहीं थी। इसकी जलराशि का विस्तार बहुत बड़ा था। इसका प्रसार अथवा फैलाव लगभग 70 या 80 मील से कम में नहीं था। इसका जल ज्यों-ज्यों सूखता गया, अथवा नीचे की ओर (गंगा में) घसता गया, त्यों-त्यों इन इलाकों में नयी-नयी नदियों का निर्माण होता गया और सूखी हुई जमीन के जंगलों को काट कर आयं लोग अपनी-अपनी बस्ती बसाते गये। जहाँ वैदिक 'सदानीरा' ने एक ओर सरयू, मही, बौद्धा, शालिग्रामी (नयी गंडक), बाया, नून, कदाने और पुरानी गंडक को जन्म दिया, अथवा अपनी विरासत के रूप में इन नदियों को छोड़ गयी, वहीं दूसरी ओर उसने एक विशाल भ-भाग को भी अपने गर्भ से बाहर किया, जो बाद में 'वैशाली' के नाम से संसार में विख्यात हुआ / वैशालिक, वृज्जिक, मल्लक अथवा
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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