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________________ वैदिक काल में वैशाली 273 मद्रक जातियां इसी भू-भाग की रहने वाली थीं। जहाँ विदेह (पूर्व विदेह) और कोशल का निर्माण वैदिक युग-ब्राह्मण युग में हो गया था, वहाँ वैशाली का संस्थापन रामायण-काल में या उससे कुछ ही दिन पहले हुआ था / इसका एकमात्र कारण यही था कि वैशाली तबतक 'सदानीरा' के गर्भ से प्रकट नहीं हुई थी। / वैशालिकों की सभ्यता वैदिक सभ्यता थी। उनके सभी संस्कार वैदिक थे / इसका एक मात्र कारण यह था कि वैशाली के पूरब और पश्चिम विदेह और कोशल-दोनों अपने समय में वैदिक सभ्यता के प्रधान केन्द्र थे। और सच तो यह है कि जिस प्रकार कोशल और विदेह वाले इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय थे, वैशालिक भी उसी वंश के क्षत्रिय थे। और इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय लोग वैदिक सभ्यता के अनन्य भक्त और प्रतिपालक थे / वे शूर थे, वे वीर थे, वे साहसी थे, वे सुन्दर थे और सब प्रकार देश, समाज, प्रजा और परिवार के प्रतिपालक थे / अतिथि-सत्कार में तो वे ला-मिसाल थे, जैसा कि बाद के साहित्य से भी प्रकट होता है। बौद्ध-युग में भी उनके संस्कार में कोई विशेष विकार नहीं उत्पन्न हो पाया था, कारण इसका यह अनुमान किया जाता है कि उनकी सम्बन्ध-परम्परा काशी, कोशल, विदेह आदि के वंशजों के साथ अक्षुण्ण बनी रही। . .
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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