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________________ 262 Homage to Vaisali राजा चेटक के पारिवारिक इतिहास के सम्बन्ध में आवश्यकचूर्णि' में इस प्रकार वर्णन मिलता है : 'वैशाली नगरी में हैहय वंश में राजा चेटक का जन्म हुआ था। इस राजा को भिन्न-मिन्न रानियों से सात पुत्रियां हुई थीं जिनके नाम ये थे : 1. प्रभावती 2. पद्मावती 3. मृगावती ४.शिवा 5. ज्येष्ठा 6. सुज्येष्ठा और 7. चेल्लणा।.......प्रभावती वीतिमय के उदायन से, पद्मावती चम्पा के दधिवाहन से, मृगावती कौशाम्बी के शतानीक से, शिवा उज्जयिनी के प्रचोत से और ज्येष्ठा कुण्डग्राम के वर्षमान स्वामी के बड़े भाई नन्दिवर्धन से ब्याही गई थीं। सुज्येष्ठा और चेल्लणा तबतक कुमारी ही थीं। उपर्युक्त वर्णन महावीरचरित्र में भी ज्यों-का-त्यों मिलता है / इसी अन्य के अनुसार बाद में मगध के राजा श्रेणिक (=बिम्बिसार) ने राजा चेटक से सुज्येष्ठा से ब्याह करने की प्रार्थना की; परन्तु राजा चेटक ने उत्तर दिया : 'वाहिक कुल में उत्पन्न होकर हैहयवंश की कन्या चाहता है !'3 इस प्रकार सुज्येष्ठा का श्रेणिक से विवाह करना अस्वीकार कर दिया। तब श्रेणिक ने सुज्येष्ठा की अनुमति से उसके हरण की योजना गढ़ी, पर भाग्यवश वह सुज्येष्ठा से छोटी कन्या चेल्लणा का ही हरण कर सका और उसने उसो से ब्याह कर लिया। इस घटना-चक्र से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजा चेटक तथा उस समय के अन्य लोग भी वाहीक कुल के इस राजघराने को घृणा की दृष्टि से देखते थे / वस्तुतः बात यह थी कि मगध का राजघराना वहां का नहीं था, अपितु पंजाब से मगध की ओर आया था / इस कुल के सम्बन्ध में यह प्रसिद्धि थी कि यह वंश वहि और हीक नाम के दुष्टात्माओं का वंश है। इसलिए अन्य लोग इस वंश से घृणा करते थे। 1. पाठ इस प्रकार है : एतो य बेसालीए नगरीए चेडमओ राया हेहय कुलसंभूतो / तस्स देवीणं अण्णभण्णाणं सत्त धूताओ। प्रभावती, पउमावती, मिगावती, सिवा, सुजेठा, चेलणत्ति / सो चेडमओ सावओ परविवाह करणस्स पच्चक्खातं / धूताबो ग देति कस्सत्ति / ताओ, याति मिस्सगाओ रायं आपुच्छित्ता अण्णेसि इच्छितकागं सरिसगाणं देति / पभावती वीतिभए उद्दायणस्स विण्णा, परमावती चंपाए बहिवाहणस्स, मिगावती कोसंबीए सताणियस्स, सिवा उज्जेणीए पज्जोतस्स, अठ्ठा कंडग्गामे बबमाणसामिणो जेठुस्स नन्विवडणस्य दिण्णा / सुजेठा चेलेणा य दो कण्णगामो बति ।-आवश्यकचूर्णि (उत्तरभाग) पत्र 164 / 2. श्रीहेमचन्नाचार्य विचित त्रिषष्टिशलाका पुश्वचरित्र, पर्ष 10, सर्ग 6, श्लोक 184-193 / 3. मूलपाठ इस प्रकार है: 'बाहीकलजो वाच्छन् कन्या हैहयवंशवाम् !' त्रि.श. पु०० पर्व 10, सर्ग 6, श्लोक 226 / 4. महाभारत कर्णपर्व में इस वंश के सम्बन्ध में लिखा है: बहिश्च नाम होकश्च विपाशायां पिशाचको। तयोरपत्यं वाहीकाः नैषा सृष्टिः प्रबापतेः // .
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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