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________________ जैन दृष्टिकोण से वैशाली 261 वहाँ से उठ कर वैशाली में राजधानी बा गई होगी।' एक ही काल में होने वाले लिच्छवियों, बुद्ध और महावीर स्वामी के समय में विदेह की राजधानी वैशाली होने का सर्वत्र ही उल्लेख मिलता है / महावीर स्वामी के भिन्न-भिन्न नामों में उनके 1. विदेह, 2. वैदेहदत्ता, 3. विदेहजात्य और 4. विदेहसुकुमार नाम जैन ग्रन्थों में मिलते हैं, साथ ही वेसालिय ( बैशालिक) नाम का भी उल्लेख मिलता है। इन नामों से यह स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि महावीर स्वामी के समय विदेह जनपद की प्रमुख नगरी वैशाली थी, उसी जनपद और नगरी के साथ विशिष्ट सम्बन्ध होने के कारण ही महावीर स्वामी को उपर्युक्त नाम प्राप्त हुए थे। महावीर स्वामी के कुल चातुर्मासों में से 19 चातुर्मास विदेह में हुए थे-१२ चातुर्मास वैशाली में, 6 मिथिला में और 1 अस्थिगांव में / इन चातुर्मासों से यह भी प्रकट है कि महावीर स्वामी . के समय मिथिला नगर की सत्ता तो पी, पर वह प्रमुखतम मगर न था। वैशाली और राजा चेटक ऊपर महावीर स्वामी के नामों में वैदेहदत्ता नाम का लल्लेख किया गया है / यह नाम उन्हें विदेहदत्तापुत्र होने के कारण प्राक्ष हुआ था। विदेहदत्ता' उनकी माता त्रिशला का नाम था / यह नाम उनकी माता को इसलिए प्रास हुआ था, क्योंकि माता त्रिशला विदेह देश की नगरी वैद्याली के गणसत्ताक राजा चेटक की बहिन थी। यह घराना विदेह नाम से प्रसिद्ध था। इसी कारण माता त्रिशला को विदेहदत्ता कहा गया है। निरयावलियाओं के अनुसार राजा चेटक वैशाली का अधिपति था और उसे परामर्श देने के लिए नौ मल्ल गणराजा और नौ लिच्छवि गणराजा रहा करते थे / मल्ल जाति काशी में रहती थी और लिच्छवि कोशल में रहते थे। इन दोनों जातियों का एक सम्मिलित गणतन्त्र राज्य था जिसकी राजधानी वैशाली थी और इसी गणतन्त्र का अध्यक्ष अथवा अधिपति चेटक था / इस 1. हमारे इस कथन की पुष्टि श्री जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी 'भारतीय इतिहास की रूपरेखा' में और भी एस० एन० सिंह ने 'वी हिस्ट्री ऑफ तिरहुत' में की है। 2. आचाराङ्गसूत्र पत्र 389 / / 3. भगवतोसूत्र सटीक भाग 1, पृष्ठ 231; और सूत्रकृताङ्गशोलाङ्काचार्यकृत टीका सहित अध्याय 2, उद्दे०३। 4. आधुनिक 'हायागांव' जो कि मुजफ्फरपुर से 20 मील पूर्व में बागमती नदी के निकट है। 5. आचाराङ्गसूत्र पत्र 389 में पाठ इस प्रकार है : 'समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिठुस्सगुत्ता तीसे गं तन्नि ना०, तं०-तिसला हवा विदेहविन्न, इ वा पियकारिणो इवा' / मावश्यकचूमि (पूर्व भाग) पत्र 245 में पाठ इस प्रकार है : 'भगवतो माया चेडगस्स भगिणी, भो (जा) यी चेडगस्स धूया'। अर्थात् भगवान् महावीर की माता चेटक की बहिन थी और भौजाई चेटक की पुत्री थी। 7. निरयावलियामओ पृष्ठ 27 /
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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