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________________ जैन दृष्टिकोण से वैशाली 263 राजा चेटक और कूणिक - भाग्य की विडम्बना ही कहनी चाहिए कि राजा चेटक की अध्यक्षता में जिस वैशाली गणतन्त्र का विकास हुआ था और जिसने इस काल में अपने संगठन और न्यायप्रियता के लिए इतनी प्रसिद्धि प्राप्त की थी, उसका नाच बेल्लणा के पुत्र और चेटक के दौहित्र तथा मगष के अधिपति राजा कूणिक (अजातशत्रु) वाहीक द्वारा हुआ। इसकी कथा निरयावलियाओ' और त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र में इस प्रकार दी है : . श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में चेल्लणा के पुत्र और कूणिक के छोटे भाई वेहल्ल' को सेयणग हाथी और अट्टारसवंक हार दिये थे जिन्हें कृणिक की पत्नी ने प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। कूणिक ने इन दोनों वस्तुओं को वेहल्ल से मांगा। वेहल्ल ने उन्हें इस शर्त पर देना स्वीकार किया कि कूणिक उसे अपना आधा राज्य दे दे। पर कूणिक ने उसकी बात पर ध्यान न देकर अपनी मांग को पुनः पुनः दोहराया। वेहल्ल यह सोच कर कि यदि मैं ये वस्तुएँ कूणिक को नहीं दूंगा तो मार दिया जाऊंगा, चम्पा से भाग कर अपने नाना राजा चेटक के आश्रय में चला गया। कूणिक ने अपने दूत को भेज कर हाथी, हार और वेहल्ल को चेटक से वापिस मांगा। चेटक ने उत्तर दिया कि 'कूणिक मी राजा श्रेणिक का पुत्र और चेल्लणा से उत्पन्न है, अतएव मेरा दौहित्र है; एवं वेहल्ल भी राजा श्रेणिक का पुत्र और चेल्लणा से उत्पन्न है, अतएव मेरा दौहित्र है। राजा श्रेणिक ने अपने जीवनकाल में वेहल्ल को हाथी और हार दिये थे। यदि कृणिक वेहल्ल को आधा राज्य देना स्वीकार करे तो मैं हाथी, हार और वेहल्ल को लौटा दूंगा।' परन्तु कुणिक ने इसे अस्वीकार करके युद्ध-घोषणा की सूचना दी और वैशाली पर आक्रमण कर दिया। राजा चेटक ने भी नवमल्लि और नवलिच्छवि गणराजाओं को सम्मति से उस आक्रमण का प्रतिरोध किया, पर दुर्भाग्य से इस युद्ध में राजा चेटक की हार हुई और इस हार से दुःखी होकर वह एक कुएं में कूद पड़ा। गणतन्त्र के पतन का कारण बौद्ध साहित्य की अनुश्रुतियों के अनुसार तो कुणिक (=अजातशत्रु) ने इस गणतन्त्र में फूट डाल कर इस गणतन्त्र को नष्ट किया था। पर जैनसाहित्य इस सम्बन्ध में चुप है। जैनसाहित्य के अनुसार वैशाली के इस गणतन्त्र को समाप्त करने में कूणिक की साम्राज्यवादी प्रवृत्ति प्रमुख कारण थी। बौद्धसाहित्य में जहाँ कूणिक ने इस गणतन्त्र को नष्ट करने के लिए बुद्ध से परामर्श मांगा है उस प्रकरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि बैशाली एक संगठित और शक्तिसम्पन्न प्रदेश था / इसे जानते हुए और गणतन्त्र के अध्यक्ष राजा चेटक से रक्त-सम्बन्ध होते हुए भी कूणिक ने वैशाली को नष्ट करने का जो संकल्प किया था, उससे प्रतीत होता 1. निरयावलियामओ, पृष्ठ 26-28 / 2. त्रि० श० पु०१० पर्व 10, सर्ग 12 / 3. त्रि० श० पु. 10 में हल्ल और वेहल्ल दो भाइलों के नाम का उल्लेख है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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