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________________ 156 Homage to Vaisali आनन्द ने कहा-भगवन्, सुना है कि वैशाली के लोग अपनी स्त्रियों की बड़ी कद्र करते हैं / उनका सम्मान करते हैं, उनपर कभी जोर-जबरदस्ती नहीं करते, उनपर अत्याचार नहीं करते / भगवन्, मैंने सुना है / फिर भगवान बुद्ध ने पूछा-आनन्द, सुना है कि वहां जो पूजा का स्थान है जो पूज्य हैं, जो मन्दिर है, उसमें बाधा-व्यवधान तो नहीं पड़ता ? आनन्द ने कहा-हाँ, भगवन ऐसा ही सुना है कि वैशाली के लोग, जो उनके पूज्य स्थान हैं, उनकी निरन्तर पूजा करते हैं और जो एक बार मन्दिर को दिया, उसमें किसी प्रकार कमी नहीं करते हैं / अन्तिमबार भगवान बुद्ध ने कहा कि आनन्द यह सुना है कि वैशाली के लोगों के पास जो अहंत लोग जाते हैं, जो ज्ञानी लोग हैं, गुणी हैं, वे उनका सम्मान करते हैं / हाँ भगवन् , मैंने सुना है कि वे अहंतों का, ज्ञानियों का, जो बाहर से आते हैं, उनका सम्मान करते हैं और सबको स्वच्छन्द विचरण करने देते हैं / सबको स्वच्छन्द रूप से विचार प्रकट करने का मौका देते हैं / बुद्धदेव ने कहा-आनन्द, तुम्हें बताता हूँ कि जिनमें ये सात गुण हैं, संसार की कोई शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती है / इस प्रकार, उन्होंने वर्षकार से कहा कि भाई वर्षकार, तुम्हारा वैशाली पर दांत गड़ाना सम्भव नहीं है / यहां के लोग एक साथ बैठते हैं, उठते हैं, जो करते हैं उसपर दृढ़ रहते हैं और अपने बुजुर्गों की कद्र करते हैं, अपनी स्त्रियों का सम्मान करते हैं, अपने पूज्य स्थानों की पूजा करते हैं, ज्ञानी गुणियों का समादर करते हैं। बाहर से आये हुए लोगों को स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचार प्रकट करने का अवसर देते हैं। ऐसे गुणी लोगों पर कोई राजा, कोई सम्राट् कभी शासन नहीं कर सकता है, उनका बाल बांका नहीं कर सकता। यह था वैशाली का गुण / इन्हीं गुणों के कारण वैशाली अजय रही। जैसा कि भगवान बुद्ध ने कहा था कि जितने दिनों तक ये गुण वैशाली में रहेंगे, उतने दिनों तक वैशाली का कोई बाल-बांका नहीं कर सकता और यह बात वर्षकार ने गांठ बांध ली और लौट गया। वर्षकार ने वैशाली के नागरिकों में फूट पैदा कर दी और फूट के कारण वैशाली का गौरव जाता रहा। परन्तु, बुद्धदेव के बाद भी वैशाली एकदम लुप्त हो गई, ऐसा नहीं हुआ / बुद्धदेव के कोई आठ-दस सौ वर्ष के बाद तक वैशाली का गौरव जैसा-का-तैसा बना रहा। आप कल्पना कीजिए कि सौ वर्ष पहले के लोग जानते भी नहीं थे कि वैशाली कहां है। मैं तो भूल ही गया था एक तरफ इतना बड़ा गौरव है, जिसको कोई तुलना नहीं कर सकता। संसार के इतिहास को इस भूमि ने प्रजातन्त्र दिया। पंचायती राज स्थापित किया। इस भूमि ने, एकमत होकर रहना सिखलाया। इस भूमि ने, स्त्रियों का सम्मान करना सिखाया। आपको मालूम होगा, कि बुद्धदेव आजीवन इस बात पर अडिग रहे कि स्त्रियों का संघ में प्रवेश नहीं होना चाहिए। लेकिन, वैशाली में आकर उन्होंने यह भी निश्चय किया कि स्त्रियों को भी इतना अधिकार मिलना चाहिए जितना पुरुषों को है। निश्चय ही, वैशाली की महिलाओं को देखकर उनके मन में यह बात आई होगी कि यह गलत बात है कि स्त्रियों को अधिकार नहीं दिया जाय / वैशालो के नागरिक स्त्रियों का आदर करते थे, सम्मान करते थे, चाहते तो, जोर-जबरदस्ती भी कर सकते थे उनके साथ, किन्तु इतिहास इसका प्रमाण है कि ऐसा उन्होंने नहीं किया।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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