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________________ वैशाली की महिमा 155 ... गुप्तकाल के राजा का इतना प्रभुत्व जमा, उसका एक बहुत बड़ा कारण लिच्छवियों के साथ उसका वैवाहिक सम्बन्ध था। ज्ञानशक्ति और राज्यशक्ति के अलावा एक तीसरी ताकत भी यहाँ पर थी, वह बड़ी जबरदस्त थी जो खुदाई में प्राप्त सामग्री से मालूम होती है, पुराने अन्यों से जिनका पता चलता है। यह स्थान व्यापार का एक बड़ा केन्द्र था। बड़े-बड़े सेठ यहाँ रहते थे। यहां के नाविक दूर-दूर से धनराशि-संग्रह करके ले आते थे / कला का भी यह स्थान एक प्रमुख केन्द्र था। ज्ञान और शक्ति का तो यह गढ़ ही माना जाता था। लिच्छवियों के भय से बड़े-बड़े राज्य कांपते थे। जहांतक व्यापार का सवाल है, यहां के जो निगम थे, जो कारपोरेशन थे, सेठों के काम करनेवाले जो संघ थे, उनकी इतनी शाखाएं थीं कि सारे संसार में उनकी हुण्डियां चलती थीं। _इन सेठों के जो निगम या कारपोरेशन थे, सब अलग-अलग थे। शरीफों के अलग थे, श्रेष्ठियों के अलग थे, श्रमिकों के अलग थे, इन सबका मिला हुआ संघ भी था / सन् 1913-14 ई० की खुदाई में तो अधिक गहराई तक नहीं जाया जा सका, इसलिए ज्यादा-से-ज्यादा आज से डेढ़ पौने दो हजार वर्ष तक की चीजें ही मिल पाई। लेकिन, हमारे जिन ग्रन्थों में वैशाली की चर्चा मिलती है, वे उससे काफी प्राचीन है। पिछले वर्षों की खुदाई में उससे भी पुरानी चीजें प्राप्त हुई हैं। वे निश्चित रूप से आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व की वैशाली के सम्बन्ध में गवाही देती हैं। लेकिन, यह नगरी उससे भी पुरानी है। वैशाली को परम्परा यही समाप्त नहीं होती है / मैं सोचता हूँ कि क्या यही वह महिमामयी वैशाली है ? आज जो मैं देख रहा हूँ, क्या यहीं उन लिच्छवियों और वज्जियों की सन्ताने हैं, यहीं वे मनुष्य थे ? उनमें कौन-सी विशेषता थी कि सारी दुनिया में उनका सिक्का चलता था, उनकी ध्वजा फहराती थी। भारतवर्ष में कोई ऐसा महान् सम्राट भी हिम्मत नहीं कर सकता था कि लिच्छवि और वज्जि उनके भीतर आया था / आदमी तो वे भी थे / बुद्ध भगवान् ने खुद इसका विश्लेषण किया है। एक बार अजातशत्रु के महामन्त्री ने बुद्धदेव से पूछा था कि वे उनपर चढ़ाई करें या न करें, उनको जोता जा सकता है या नहीं। बुद्धदेव ने बड़ी चतुरता के साथ अपने शिष्य, आनन्द, जिनके नाम पर तथाकथित आनन्दपुर गाँव है, प्रश्न किया, क्यों आनन्द, क्या, वज्जि लोग एक साथ उठते, बैठते हैं ? एक होकर काम करते हैं ? क्या ऐसा तुमने सुना है ? आनन्द ने कहा--हाँ भगवन् सुना है कि वैशाली के लोग एक साथ उठते हैं, एक साथ बैठते हैं, एक साथ सभा-पंचायत करते हैं। बुद्धदेव ने फिर पूछा कि क्या तुमने यह भी सुना है कि एक बार जो अपनी पंचायत में तय कर लेते हैं, उसको सभी मानते हैं, ऐसा तो नहीं होता कि बाद में कोई कहे कि हमने तो वोट नहीं दिया था ? मैं क्यों मानने जाऊं। आनन्द ने कहा हाँ ऐसा ही सुना है कि इस वैशाली नगरी के रहने वाले जो एक बार निश्चय कर लेते हैं, उससे एक बच्चा भी नहीं हिलता, सब उसका पालन करते हैं। फिर बुद्धदेव ने पूछा-अच्छा आनन्द तुमने यह भी सुना है कि वैशाली के लोग अपने बूढ़ों का सम्मान करते हैं, अपने बुजुर्गों की कद्र करते हैं, उनकी बातों को मानते हैं। आनन्द ने कहा-हां, भगवन् सुना है। बुद्ध ने फिर कहा-आनन्द, तुमने सुना है कि वैशाली के लोग अपनी स्त्रियों का सम्मान करते हैं, अपनी कुल-कुमारियों का सम्मान करते हैं। उनके प्रति कोई जोर-जबरदस्ती तो नहीं करते?
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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