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________________ वैशाली की महिमा 157 . आम्रपाली यहाँ कि एक गणिका थी, बड़ी मशहूर गणिका थी, हमारे बेनीपुरीजी में उसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। अगर आप लोगों ने नहीं पढ़ा हो, तो एक बार अवश्य पढ़ें। एक बार आम्रपाली ने बुद्ध भगवान् को निमन्त्रण दिया। बुद्ध भगवान् भोलानाथ थे, उन्होंने स्वीकार कर लिया निमन्त्रण / इसके बाद वैशाली के नागरिकों ने आम्रपाली से कहा कि देखो आम्रपाली, जिसको तुमने आमन्त्रित किया है, जिसने तुम्हारा निमन्त्रण स्वीकार किया है, उसे तुम मेरे हाथ बेच दो, मैं तुम्हें एक लाख मुद्राएँ दूंगा। आम्रपाली ने कहामैं ऐसा नहीं चाहती। कई लोगों में यह होड़ मच गई कि उससे किसी प्रकार इस अधिकार को ले लिया जाय। किसी ने एक लाख, सवा लाख, किसी ने दो लाख रख दिया, हमें तुम यह अधिकार दे दो और भगवान बुद्ध को हमारे घर भोजन करने दो। आम्रपाली ने कहानहीं, मैं क्यों बेचने जाऊँ। मैंने उन महात्मा को बुलाया है, मैं उन्हें अपने यहां भोजन कराऊँगी। लेकिन, किसी ने उसको यह नहीं कहा कि मैं तुमसे जबरदस्ती यह काम करवाऊंगा। उसके बाद आम्रपाली भगवान बुद्ध को अपने आम्रकुंज में ले गई, जहां वे कई बार आ चुके थे / एक और मशहूर बाला थी, उसने भी अपने यहां भगवान् को आमन्त्रित किया था। इस नगरी की इतनी बड़ी महिमा है। यह नगरी पंचायती राज की जन्मभूमि है, एक तरफ इतनी बड़ी कीत्ति और गौरव, दूसरी तरफ इतनी बड़ी कृतघ्नता कि नाम भी भूल गये, हम जानते भी नहीं कि आज से सौ वर्ष पहले यहाँ क्या था। एक तरफ इतनी बड़ी महिमा और दूसरी तरफ भूले, तो ऐसा भूले कि खुद को ही भूल गये। .. वैशाली के इतिहास का पता लगाया बड़े-बड़े धुरन्धर विद्वानों ने, कुछ विदेशी विद्वानों ने कुछ भारतीय विद्वानों ने, मैं उनकी श्रद्धा और निष्ठा को देखकर लज्जित रह जाता हूँ। परन्तु, बड़ी कृतज्ञता के साथ उनका नाम लेता हूँ-कितने प्रेम से, कितनी निष्ठा से, कितनी कठिनाई से काम करके उन्होंने इन चीजों का उद्धार किया है, उन विदेशी विद्वानों के प्रति हमें हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए / लेकिन सवाल यह है कि वैशाली में तो पहले इतना उल्लास नहीं था, आज क्यों उल्लास है / पहले वे वैशाली की महिमा से अपरिचित थे, किन्तु अब उन्हें बिदित हो गया है कि वैशाली यही थी, यह वह भूमि है, जिसमें भगवान बुद्ध और भगवान् महावोर की चरणरज पड़ी है। पता नहीं, जहाँ आप बैठे हैं, वहाँ भी वे चरण-रज उड़ रही हैं। यहां के आकाश में, वायुमण्डल में, उनके सन्देश गूंज रहे हैं / यह आनन्द पहले भी था और आज भी है / आज भी उन लोगों के भीतर यही आनन्द और उल्लास देख रहे हैं, इतनी अपार जनता उमड़ी हुई है, वैशाली की महिमा लोगों को यहां खींच लाई है। एक बार शान्तिनिकेतन में हमारे एक विदेशी मित्र, जो संस्कृत के बड़े विद्वान् थे, संस्कृत-नाटकों में आम्रमंजरी का नाम सुना था, ठहरे थे। संयोग से उनका स्वागत करने के लिए आम्र कुंज में ही आयोजन किया गया, जब वह आये तब मैंने उन्हें बताया ये आम के पेड़ हैं और यह उनकी आम्रमंजरी है। उन्होंने बहुत सुना था, आम्रमंजरी को देखा भी था।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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