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________________ 118 Homage to Vaisali एवं बुद्ध-धर्म ने इस पर जितना जोर दिया है, उसे समझकर पब हम इस मोर ध्यान देते हैं, तब इस विषय का शोधकार्य बड़ा-ही महत्त्वपूर्ण प्रतीत होने भगता है। जैन धर्म की रीढ़ अहिंसा ही है। वर्तमान युग में महात्मा गांधी ने अपने जीवन में, तथा उन्होंने जो कुछ भी कहा तथा किया, सबमें अहिंसा को ही प्रमुख स्थान दिया था। यहां तक कि विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्ध में भी उन्होंने अहिंसा को ही प्रमुखता दी थी। आज अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जिस पंचशील की चर्चा है, वह अहिंसा से ही उद्भुत है। डॉ. अलबर्ट जेविल्लर ने अपने लेखों में यह लिखा है कि यदि हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है, तो जीवन के नये मूल्यों की आधारशिला के रूप में जीवन के प्रति आस्था को ग्रहण करना अनिवार्य है। ये सभी तत्व यही संकेत करते हैं कि अहिंसा के सिद्धान्त कितने गहन एवं बाधारमृत है, अहिंसा का प्रवाह कितना विस्तृत है तथा मनुष्य जैसे सामाजिक प्राणी के लिए अहिंसा का अर्थ कितना व्यापक है। संस्थान का शिलान्यास उक्त संस्थान का शिलान्यास बिहार की भूमि में हुआ, यह इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि बिहार सरकार अपनी संस्कृति तथा दर्शन के प्रति यथेष्ट सजग है। इसका कारण श्री है, समस्त भारत में बिहार ही प्राचीन परम्परा और संस्कृति की दृष्टि से वैभवशाली रहा है। उपनिषदों के याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी, मिथिला के बनक, बुद्ध, महावीर, चनगुप्त, चाणक्य, अशोक तथा अनेकानेक महापुरुषों की भूमि बिहार ही पी। यही कारण है कि यहाँ दरमंगा में संस्कृत में शोधकार्य करने के लिए मिथिला संस्थान तथा पाकि और बुख-धर्म में शोधकार्य करने के लिये नालन्दा में नालन्दा संस्थान स्थापित करने की प्रेरणा लोगों को मिली। उक्त सस्थान तो पहले से ही कार्यरत है, साथ ही कुछ दिन पूर्व नालन्दा विहार की भी स्थापना की गई है जिसका उद्घाटन डॉ. राधाकृष्णन ने किया था। इसके अतिरिक्त, फारसी और अरबी में शोधकार्य करने के लिये खुदाबक्स लाइब्रेरी में एक संस्थान खोला गया है। ___ अब वैशाली में प्राकृत, जैन-धर्म तवा अहिंसा के लिए यह संस्थान खुला है। यहाँ पर मैं अपने जैन मित्र श्री शान्ति प्रसाद जैन की प्रशंसा किए विना नहीं रह सकता। श्री शान्ति प्रसाद जैन बिहार के एक प्रमुख उद्योगपति हैं। इस संस्थान की स्थापना इतनी जल्दी हो सकी, इसका पूरा श्रेय उन्हें और उनके सहयोगियों को ही है। इस संस्थान के भवननिर्माण आदि के लिए उन्होंने पांच लाख रुपये की राशि दी है, साथ ही आगामी पांच वर्षों तक आवत्तंक व्यय का भी कुछ हिस्सा आप देंगे। सरकार इस संस्थान को भी वैसे ही चलायेगी तथा इसका भी वैसे ही सारा खर्च वहन करेगी, जैसे इसी प्रकार के अन्य संस्थानों को चला रही है। यह आया की जाती है कि जैन-समुदाय; जो यथेष्ट समृद्ध और उदार है, इस ओर पर्याप्त ध्यान देगा, ताकि इस संस्थान की ओर न केवल भारत की ही विद्वन्मंडली आकर्षित होगी, अपितु समस्त संसार की विद्वन्मंडली इस संस्थान की मोर आकृष्ट होगी, क्योंकि इस संस्थान में अहिंसा जैसे विषय में शोधकार्य किया जायगा, जिसका महत्त्व सम्पूर्ण विश्व में अक्षुण्ण है।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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