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________________ वैशाली का सांस्कृतिक महत्त्व 117 किन्तु वैशाली के राजनीतिक महत्व तथा उसके अविस्मरणीय नागरिकों, लिच्छिवियों की अपेक्षा, वहाँ के धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व अधिक प्रभावशाली हैं। वैशाली भगवान् बुद्ध का प्रिय स्थान था। उन्होंने अपना अधिकांश समय यहीं धर्मोपदेश में व्यतीत किया / उन्होंने यहां की जनता को त्रायस्त्रिंश देव की संज्ञा से अभिहित किया था। उन्होंने यहां को जनता की एकता, उनके प्रजातंत्र तथा उनकी धर्म-भावना की प्रशंसा की थी। यहीं की सर्वाधिक वैभवशालिनी एवं सुन्दरी वारांगना आम्रपाली ने स्वयं अपने आपको तथा अपनी सारी सम्पत्ति को भगवान बुद्ध के चरणों में अर्पित कर दिया था और इसके द्वारा उसने यह सिद्ध कर दिया था कि व्यक्ति एवं वैभव के आकर्षण की अपेक्षा आन्तरिक शान्ति तथा अखण्ड व्यक्तित्व का महत्त्व कहीं अधिक है। इसी के निकट कोल्हुआ का एक स्तूप है, जो भगवान बुद्ध के प्रियशिष्य आनन्द को समर्पित किया गया है / जन्मभूमि आज, 23 अप्रैल 1956 ई० का दिन एक अन्य दृष्टि से भी बड़ा ही महत्वपूर्ण है। इसी क्षेत्र का बसुकुण्ड, अन्तिम जैन तीर्थकर वर्द्धमान महावीर का जन्म स्थान है / आज ही उनका जन्म-दिवस है। वर्द्धमान महावीर आज के जैनधर्म के संस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित है / आपने संन्यास लेने के पूर्व 30 वर्षों तक तथा संन्यास ग्रहण करने के बाद बारह वर्षों का समय यहीं व्यतीत किया था। लगभग दो हजार वर्षों से भी अधिक समय से बसुकुण्ड प्राम का यह छोटा-सा क्षेत्र, भगवान महावीर की जन्म-भूमि होने के कारण, उन्हें समर्पित है। यह जमीन यों ही पड़ी है। इस पर किसी प्रकार की खेती नहीं की जाती। वह ज्यों-की-त्यों सुरक्षित पड़ी है। यहीं आज हमारे श्रद्धेय राष्ट्रपति द्वारा, भगवान महावीर के स्मारक भवन का शिलान्यास किया गया है। वशाली की यही राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक पृष्ठभूमि के महत्त्व के कारण विद्वानों तथा जन-साधारण का ध्यान इस ओर विशेष रूप से आकृष्ट हुआ है। आज इस स्थान का महत्त्व पुरातत्त्व एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वोपरि है। डॉ० श्रीकृष्ण सिंह के प्रेरणादायक पथ-प्रदर्शन से वैशाली संघ यहाँ वैशाली-महोत्सव का आयोजन करने लगा, तब से तो यह स्थान एक तीर्थ के रूप में ही परिणत हो गया है / आज इसी पवित्र भूमि पर हमारे राष्ट्रपति द्वारा, प्राकृत जैनधर्म तया अहिंसा के स्नातकोत्तर अध्ययन एवं शोध के निमित्त एक संस्थान का शिलान्यास किया गया है। अहिंसा यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है कि शोष-कार्य के लिए अहिंसा सर्वथा नया तथा अत्यन्त ही लाभदायक विषय है। यहाँ अहिंसा का सम्बन्ध केवल उसके आध्यात्मिक एवं धार्मिक पक्ष से नहीं है। अपितु, अहिंसा के सैद्धांतिक पक्ष से है। इसी के अन्तर्गत प्रेम का सिद्धान्त भी निहित है, जो सभी प्राणियों का आधार तथा सभी चेतन तत्त्वों का सम्बन्धसूत्र है। अपनी गौरवपूर्ण परम्परा पर ध्यान देने से, तथा हिन्दू-धर्म, जैन-धर्म
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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