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________________ Immuninsunn वैशाली का सांस्कृतिक महत्त्व' श्री रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर, राज्यपाल, बिहार आज का दिन केवल हम भारतवासियों के लिये ही नहीं, बल्कि समस्त मानव-जाति के लिये बड़े ही सौभाग्य एवं गौरव का दिन है। आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व, इसी पवित्र भूमि पर, जहाँ अभी हम लोग एकत्रित हुए हैं, कभी उस महापुरुष का आविर्भाव हुआ था, जिसने सिर्फ मानव-समाज में ही नहीं, वरन् सृष्टि के समस्त जीवधारियों में, शान्ति, समता, सहृदयता और सह-अस्तित्व की स्थापना के लिए, अपने समस्त राजसी सुखों को लात मार कर संन्यास लिया था। कल्पना कीजिये, उस समय की, जब 30 वर्ष के राजकुमार ने अपने अग्रज के समक्ष, लोक-कल्याण की मंगल-कामना से अभिभूत होकर प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति देने के लिए आग्रह किया होगा और जरा उस स्थिति पर भी विचार कीजिए जब दिन के तीसरे पहर, यहीं के ज्ञातृ खण्ड बन में, उस समय, जब समस्त वैशाली के नगर निवासी, बाल, वृद्ध, युवा, स्त्री, पुरुष, सभी उपस्थित होंगे, उसने प्रवज्या ग्रहण की होगी, उस समय उपस्थित जन-समुदाय के साथ-साथ स्वयं उस राजकुमार की अर्धाङ्गिनी, यशोदा, और पुत्री प्रियदर्शना की मानसिक अवस्था कैसी होगी, सोचने पर आज भी आँसू आ जाते हैं / आत्मोत्सर्ग का यह महान् आदर्श निरूपित करनेवाले, महापुरुष, जिस मिट्टी में पैदा हों, सचमुच वह धरती धन्य है, और धन्य हैं वहां के रहनेवाले वे लोग। वैशाली, इस नाम में ही जादू का असर है / यह स्थान मुजफ्फरपुर से लगभग तेईस मील की दूरी पर अवस्थित है। छठी शताब्दी ई० पू० में ही यह वज्जियों का गणतंत्र-संघ से सम्बन्धित था। वज्जि संघ की यही राजधानी थी। साथ ही, बज्जि संघ के आठ गणतंत्रों में से सर्वाधिक शक्तिशाली लिच्छिवियों की राजधानी भी यहीं थी। सभी गणतंत्रों का संचालन बहुत ही व्यवस्थित एवं उत्कृष्ट ढंग से होता था। कहा जाता है कि भगवान् बुद्ध ने बुद्धधर्म को संघटित करते समय वज्जियों की गणतंत्र-प्रणाली की बहुत-सी बातों को हू-बहू स्वीकार कर लिया था। 1. बारहवें वैशाली महोत्सव के अवसर पर 23 अप्रैल 1956 ई० को दिया गया अध्यक्षीय भाषण।
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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