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________________ 98 Homage to Vaisali . आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व की बात सोचिए / संसार कितना परिवर्तन-शील है? जहाँ हम और आप इस समय खड़े या बैठे हैं, वहां उस समय एक वैभवशाली राजधानी थी और उसी का नाम वैशाली था। वैशाली का एक भाग कुंडपूर या क्षत्रियकुण्ड कहलाता था, जहां एक राजभवन में राजा सिद्धार्थ अपनी रानी त्रिशला के साथ धर्म और न्याय-पूर्वक शासन करते हुए सुख से रहते थे। रानी त्रिशला की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ और राजकुमार के अनुरूप उसका पालन-पोषण और शिक्षण हुआ। इसी राजकुमार की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई बुद्धि और प्रतिमा तथा उन्नति-याली शरीर को देखकर उसका नाम वर्द्धमान महावीर रखा गया / स्वभावतः यह आशा की जाती थी कि राजकुमार महावीर भी यथा-समय राज्य की विभूति का सुख-भोग करेंगे। किन्तु ऐसा नहीं हुआ / लगभग वीस वर्षों की युवावस्था में उन्हें राजभवन के जीवन से विरक्ति हो गयी, और वे आत्मकल्याण तथा लोकोपकार की भावना से प्रेरित होकर राजधानी को छोड़ वन को चले गये। उन्होंने भोगोपभोग और साज-सजावट की समस्त सामाग्री का परित्याग तो किया ही, किन्तु लेशमात्र भी परिग्रह रखना उन्होंने अपनी शान्ति और आत्मशुद्धि का बाधक समझा। इसलिए उन्होंने वस्त्र का भी परित्याग कर दिया और वे 'निग्रंथ' या 'अचेल' हो गये। इस प्रकार बारह वर्षों तक कठोर तपस्या करने के पश्चात् उन्हें सच्चा, शुद्ध और संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसके कारण वे 'सर्वज्ञ' और 'केवली' कहलाने लगे। उस समय मगध देश की राजधानी राजगृह (भाधुनिक राजगीर) थी और वहाँ सम्राट् श्रेणिक बिंबिसार राज्य करते थे / भगवान् महावीर विहार करते हुए राजगृह पहुंचे और विपुलाचंल नामक पहाड़ी पर उनका सर्व प्रथम प्रवचन हुवा / उनके उपदेशों को हजारों की संख्या में जनता ने बड़े चाव से सुना और ग्रहण किया। फिर कोई तीस वर्षों तक भगवान् महावीर देश के भिन्न-भिन्न भागों में विहार करते रहे और इसीलिए इस प्रदेश का नाम 'बिहार' प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने मुनि, आजिंका, श्रावक और श्राविका इस प्रकार चतुर्विध संघ की रचना की, जिसकी परम्परा जैन धर्म के नाम से बाज तक भी विद्यमान है। किंतु मैं यह बात नहीं मानता कि महावीर भगवान् के उपदेशों की परम्परा केवल अपने को जैनी कहनेवाले लोगों में ही विद्यमान हो। भगवान् महावीर ने जो अमृतवाणी वर्षायी, उसका भारत की कोटि-कोटि जनता ने पान किया, जिसका प्रभाव आजतक भारतीय जनता भर में कुछ-न-कुछ सर्वत्र पाया जाता है। बिहार करते हुए भगवान् पावापुरी पहुंचे और वहां करीब बहत्तर वर्षों की अवस्था में उनका निर्वाण हो गया। प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव दीपमालिकाओं द्वारा मनाया गया और आजकल जो दीपावली मनायो जाती है, वह उसी परम्परा की द्योतक है। ___ भगवान महावीर का उपदेश संक्षेप में यह था कि चेतन और जड़ ये दोनों अलगअलग पदार्थ हैं, जिन्हें हम जीव और अजीव तत्त्व भी कह सकते हैं। ये दोनों प्रकार के तत्त्व अनादि और अनंत हैं। जीव का जड़ भौतिक तत्व के साथ अनादि काल से संबंध चला आता है। यही उसका संसार या कर्म-बंधन है। जीव शुभ कर्म करता है, तो उसे पुण्य का
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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