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________________ PANDE IMINAIDUN भगवान महावीर और उनका लोक-कल्याणकारी सन्देश' डा० हीरालाल जैन, एम० ए०, एल-एल०बी०, डी० लिट् 0 प्रिय बंधुओ, मैं वैशाली-संघ और उसके सुयोग्य प्रधान मंत्री श्री माथुरजी का बहुत कृतज्ञ हूँ, जो उन्होंने मुझे वैशाली की इस पवित्र भूमि के दर्शन करने और यहां एकत्रित जनता के सम्पर्क में आने का आज . यह सुअवसर प्रदान किया। वैशाली एक महान् तीर्थक्षेत्र है, और तीर्थवंदना का अवसर मनुष्य को बड़े पुण्य के प्रभाव से ही मिला करता है। अतएव इस अवसर को पाकर मैं अपने को बड़ा पुण्यशाली अनुभव कर रहा हूँ। इस वैशाली-क्षेत्र को तीर्थ की पवित्रता किस प्रकार प्राप्त हुई, यह बात आप सभी मली भांति जानते हैं। यह वही भूमि है, जिसने भगवान महावीर जैसे महापुरुष को जन्म दिया / यहाँ भगवान महावीर का जन्म आज से कोई अढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ था। भगवान् महावीर कितने महान थे, यह इसी बात से जाना जा सकता है कि अढ़ाई हजार वर्षों के दीर्घकाल के पश्चात् भी हम जौर आप सब आज अनेक कष्ट सहकर भी उनकी जन्मभूमि के दर्शन कर अपने को धन्य और पुण्यवान् बनाने के लिए यहाँ आये हैं / इस सुअवसर पर स्वाभावतः हमें यह जानने की कुछ विशेष इच्छा और अभिलाषा होती है कि भगवान् महावीर में ऐसा कौन-सा गुण था और उन्होंने ऐसा कौन-सा महान कार्य किया, जिसके कारण उन्हें आज भी यह लोक-पूजा प्राप्त हो रही है / महावीर कौन थे, यह बात विस्तार से बतलाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे आप संभवतः इससे पूर्व अनेक बार सुन और पढ़ चुके होंगे। किन्तु उनकी जन्म-जयंती के इस अवसर पर उनके जीवन का स्मरण कर लेना एक पुण्य-कार्य है / इसलिए संक्षेप में भगवान् महावीर के जीवन-वृत्तान्त की चर्चा कर लेता हूँ। 1. ग्यारहवें वैशाली महोत्सव (अप्रैल 5, 1955) के अवसर पर दिया गया अध्यक्षीय भाषण। 13
SR No.012088
Book TitleVaishali Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogendra Mishra
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1985
Total Pages592
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size17 MB
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