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________________ 214 स्मृतियों के वातायन से सहते आत्मार्थी बनकर मुक्त हो गये। ब्रह्मचर्य के लिए प्राणोत्सर्ग करनेवाले सुदर्शन और जैनधर्म के लिए प्राण अर्पण करनेवाले भट्ट अकलंक की कथायें आँखों को नम कर देती हैं। कृति में कहानी जीवंत इसलिए लगती हैं कि उनमें लेखक द्वारा पात्रों का चरित्र चित्रण, कथोपकथन, वातावरण का सजीव चित्रण हुआ है। कृति मुनियों के उपसर्गों के साथ-साथ उनके उपदेशों द्वारा जैनसिद्धांतों की उत्तम प्रस्तुति हुई है। यह अति पठनीय, मननीय कहानीसंग्रह है । समीक्षक : डॉ. श्री गोवर्धन शर्मा मृत्युञ्जयी केवली राम 'मृत्युञ्जयी केवली राम' डॉ. शेखरचन्द्र जैन द्वारा लिखित उपन्यास है। जिसके प्रेरक थे पू. उपा.ज्ञानसागरजी, और प्रकाशक संस्था थी अखिल भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रि मृत्युञ्जयी परिषद। पुस्तक का प्रकाशन सन् 1990-91 में किया गया था। इसकी प्रस्तावना प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाशजीने लिखकर उपन्यास पर प्रकाश डाला है। केवली राम भगवान राम भारतीय संस्कृति में सर्वमान्य रहे हैं। यह अलग बात है कि अलगअलग धर्मों में उनका मूल्यांकन अन्य-अन्य प्रकार से हुआ है। पूरे विश्व में लगभग सातसौ से अधिक रामचरित्र गद्य और पद्य में लिखे गये हैं। भारत में वाल्मिकी और 1 तुलसी के राम काव्य सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए हैं। जैनधर्म में 'पउमचरिउ', 'पद्मचरित' आदि अनेक रामकथाओं का दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नायों में वर्णन हुआ है। आचार्य रविषेण का पद्मपुराण सर्वाधिक मान्य रहा है, प्रस्तुत उपन्यास को उसीके आधार पर प्रस्तुत किया गया है। महामानव राम के आदर्श जीवन से मानवमात्र को आदर्श जीवन यापन का सुमार्ग प्राप्त होता है। आदर्श जीवन के प्रति निष्ठा और चारित्र के प्रति दृढ़ता हो तो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी वह पराजित नहीं होता । जैन रामायण - पद्मपुराण में यद्यपि हिंदु धर्म में वर्णित राम कथानकों से अनेक परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। उदाहरण के रूप में राम और लक्ष्मण विश्वासमित्र के साथ न जाकर राजा जनक की म्लेच्छ राजाओं से रक्षा करने जाते हैं। वे वनवास के दौरान अनेक राजाओं के साथ युद्ध' भी करते हैं और सिंहोदर जैसो को झुकाते हैं। वे मार्ग में देशभूषण, कुलभूषण जैसे मुनियों के उपसर्ग दूर करते हैं। जैन रामायण में हनुमान बंदर न होकर वानर वंशीय क्षत्रिय हैं, तो रावण राक्षस न होकर राक्षस वंशीय ब्राह्मण है। जैन शास्त्रों में पुरूषोत्तम राम को आठवां बलभद्र माना गया है। राम ही पद्म हैं, जो उज्जवल चरित्र के धारी, धर्मपरायण । हैं । यहाँ राम को आठ हजार रानियों का स्वामी और दशरथ के तीन नहीं चार पत्नियों का उल्लेख है। कथा में शबरी । का प्रसंग नहीं है। रावण का वध राम द्वारा नहीं पर लक्ष्मण द्वारा हुआ है। लक्ष्मण को शक्ति लगने पर विशल्या नामक कन्या के स्नान जल से उनके ठीक होने का वर्णन है। जैन रामायण में कुंभकरण, मेघनाथ, इन्द्रजीत का वध नहीं होता अपितु वे जैनदीक्षा धारण कर मुनि बनके तपस्या करते हैं। सीता का त्याग तो लोकापवाद के कारण हुआ परंतु वे धरती में नहीं समातीं अपितु अग्निकुण्ड में प्रवेश करती हैं। उनके सतीत्व के कारण अग्निकुण्ड जलकुण्ड में परिवर्तित हो जाता है। बाद में वे तपस्या करके स्त्री लिंग का छेदन करके सोलहवें स्वर्ग में इन्द्र पद प्राप्त करती हैं। इसी प्रकार लक्ष्मण के आठ पुत्र शत्रुघ्न, भरत, हनुमान, सुग्रीव आदि सभी जैन दीक्षा ग्रहण करते हैं और अंत में राम भी मुनि 1 दीक्षा धारण करते हैं। रामके वन गमन के बाद दशरथ की मृत्यु नहीं होती अपितु वे भी दीक्षा धारण करते हैं। इस प्रकार अनेक कथाभेद होने के बाद भी पुरूषोत्तम राम जैन संस्कृति में वंदनीय और पूज्यनीय रहे हैं क्योंकि वे मोक्षगामी हैं। डॉ. शेखर चन्द राम की कथा को उपन्यास के रूप में प्रस्तुत करने की कला बहुत ही श्रेष्ठ है । लेखकने सभी पात्रों को इतने जीवित रूप में प्रस्तुत किया है कि पाठक का लगता है उन पात्रों के साथ ही जी रहा है। यथास्थान पर वातावरण का चित्रण कथोपकथन बड़े ही चोटदार हैं। कहीं-कहीं तो कथोपकथन सुक्तिवाक्य से लगते हैं। सचमुच लेखक का वर्णन कौशल ! इसमें सर्वत्र झलकता है। उपन्यास शैली के समस्त तत्त्वों का इसमें निर्वहण हुआ है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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