SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को देखना- समझना... ये कहानियाँ वह आईना हैं जिसमें अपने युग की संस्कृति, ज्योतिर्धरा 1 धर्म, समाज व्यवस्था, नैतिकता आदि के दर्शन किये जा सकते हैं । विच्छृंखल हो रहे वर्तमान समाज के लिए ये पथदर्शिका हैं। आजके भौतिकवादी वासनामय संसार के तनाव में जीनेवाले मनुष्य को ये कहानियाँ शांति प्रदान कर सकती हैं, जीने की नई व्यवस्था दे सकती हैं। 213 नारी हर युग में अपनी अग्नि परिक्षा से गुजरती रही है, उसका चीर हरण होता रहा है, उसे चारित्रिक लांछन की वेदना सहनी पड़ी है। उसने कोढ़ी को भी पति परमेश्वर माना । वह भरे बाज़ार में नीलामी पर चढ़ी और शंका के दायरे में जंजीरों से जकड़ी रही। इतने संघर्षों में भी वह अड़िग रही। रावण और दुर्योधन उसे डिगा नहीं सके।' लेखकने जहाँ एक ओर पौराणिक सतियों में सीता, अंजना, द्रौपदी, राजुल, चंदनबाला, चेलना, मैनासुंदरी की कथायें प्रस्तुत की हैं तो साथ ही चरित्रशीला मनोरमा, शीलवती अनंतमती के साथ वर्तमान युगकी देशप्रेमी कमला जो भामाशाह की पत्नी थी, जिसने अपने पति को देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा दीं थी- ऐसी सतियों के चरित्र इस कहानी संग्रह में प्रस्तुत हुए हैं। यद्यपि कहानी सब जानी - पहिचानी हैं लेकिन उनको आधुनिक शैली में नये विचारों के साथ कथोपकथन की शैली में रखने से वे लोकभोग्य हो गईं हैं। लेखक की शैली इतनी प्रभावोत्पादक है कि पाठक अथ से इति तक पढ़कर ही संतुष्ट हो पाता है। सचमुच में यह सतियाँ हमारी संस्कृति की ज्योतिर्धरा हैं। परीषह - जयी परीषह-जयी डॉ. शेखरचन्द्र जैन का यह कहानी संग्रह महान तपस्वी मुनियों की कथाओं का चरित्र | चित्रण प्रस्तुत करता है। पुस्तक का प्रकाशन कुंथुसागर ग्राफिक्स द्वारा श्री जितेन्द्रकुमार 1 | रमेशचंद कोटड़िया ( फ्लोरिडा, अमरिका) के आर्थिक सहयोग से हुआ। इस कथा लेखन ! की प्रेरणा स्वरूप भी पू. उपा. ज्ञानसागरजी रहे हैं। जिनकी प्रेरणा से वे 'ज्योतिर्धरा' और ! 'मृत्युंजय केवली राम' जैसी कृतियाँ लिख चुके थे। साहित्य की विधा में कहानियों का विशेष स्थान रहा है क्योंकि 'फिर क्या हुआ ?' की जिज्ञासा उसे लोकप्रिय बनाती है। जैन साधु तप की ऊँचाइयों पर हरप्रकार के उपसर्ग 1 सहन करके भी दृढ़ रहते हैं । कृति की प्रायः सभी कहानियों में मुनियों पर उपसर्ग के ! कारणों में भव-भव के संचित क्रोध, बैर-भाव की ही प्रधानता रही है। पूर्व भव के बैरी उन पर भयानक उपसर्ग ! करते रहे पर वे सुमेरु की भाँति अटल रहे। देह से देहातीत हो गये। मुनि सुकुमाल की पूर्व भव की भाभी या सुकोशल मुनि की पूर्व भव की माँ ही उनकी बैरीन हो गईं और उनकी मृत्यु का कारण बनीं। कृति में लेखक ने सुकुमाल मुनि सुकोशल मुनि, भट्ट अकलंक देव, चिलात पुत्र मुनि, विद्युतचर मुनि, आ. समन्तभद्राचार्य, वारीषेण मुनि, जम्बूस्वामी, सुदर्शन सागर और गज़कुमार इन दस मुनियों की कथाओं को प्रस्तुत किया था । यद्यपि प्रत्येक कहानी का उल्लेख 1 शास्त्रों में है, लेकिन यहाँ लेखकने नई शैली में पात्रों का यथावत स्वीकार करते हुए प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। साथ ही मुनियों के तप और त्याग की वैज्ञानिकता को भी प्रस्तुत किया है। कितने महान थे मुनि सुकमाल या सुकोमल जिनका सियारनी एवं सिंहनी भक्षण करती रहीं, गजकुमार के शिर पर अग्नि जलती रही फिर भी वे देह से देहातीत होकर मुक्ति को प्राप्त कर गये । चिलातपुत्र, विद्युतच्चर जैसे दुष्ट धर्म के पंथ पर आरूढ़ होकर समस्त उपसर्गों को सहकर मोक्षगामी हुए। वारीषेण और जम्बूस्वामी भी परीषह सहते ! भी
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy