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________________ समर्पण शंखनाद जो जैन एकता का नित करते रहते। जैनधर्म की ध्वजा विश्व में जो लहराते रहते ॥ सरस्वती जिनकी जिव्हा पर सदा वास है करती। विद्वानों के शेखरसम जिनकी है कीर्ति दमकती ॥ जो समाज का गौरव बन सबका पथ दर्शन करते । जैन गगन पर ज्ञान सूर्य से जो दिनरात दमकते ॥ हों शतायु यशवान, कीर्ति फैले जैसे हो चंदन । ज्ञान शिखर के इन शेखर का करते हैं अभिनंदन ॥ *** डॉ. शेखरचन्द्र जैन को समर्पण के साथ यह ग्रन्थ समर्पित हैसमर्पित है उन साधु भगवंतों को जिन्होंने साम्प्रदायिक एकता के लिए सेतू बनने का मार्ग प्रशस्त किया है। उन सभी विद्वानों को जिन्होंने जैनधर्म के वातायन से 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' के सिद्धान्त के प्रचार-प्रसार को संप्रदाय से उमर मानकर जैनधर्म की सेवा की है। उन सभी महानुभावों को जो सदैव जैन एकता के समर्थकप्रचारक रहे हैं। पदाधिकारी अभिनंदन समिति संपादक मंडल 'स्मृतियों के वातायन से' XI
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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