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________________ नया मार्ग दिखलाया - नाज़र जैन, चण्डीगढ़ "मृगातवी जी" कौम को तुम ने नया मार्ग दिखलाया, इक-इक कली और फूल को तुमने प्यार से फिर महकाया। १. धन्य है माता, धन्य पिता वह जिसने जन्म दिया है, धन्य नगर वह धन्य वह धरती जिसका दूध पिया है, धन्य गुरु जिस ने दी दीक्षा, धन्य जिसने पढ़ाया। मृगावती जी... ... ... ... कौन था कहता हर इक दिल पर बन कर चाँद छाएगी, किसे पता था रूप में "चन्दना" के पंजाब आएगी, धन्य वह दिन जिस दिन पंजाब में तुमने चरण टिकाया । मृगावती जी... ३. आज हर इक दिल पर तुम्हारे प्यार की है तस्वीरें, जाग उठी हैं जन-जन की सोई हुई तकदीरें, इक-इक कौम का बिखरा मोती तुमने आज मिलाया, मृगावती जी... ... ... ... ४. अंधेरे घर का बनकर दीपक 'नाज़र' उज्याला करते, तरस्ते जो टुकड़े-टुकड़े को, उन का दुःख थे हरते, मानवता की बनकर सुगन्ध हर दिल को फिर महकाया । मृगावती जी... ... ... ... મહત્તરા શ્રી મૃગાવતીશ્રીજી ૧૬૯
SR No.012083
Book TitleMahattara Shree Mrugavatishreeji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah and Others
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1989
Total Pages198
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size5 MB
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