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________________ ૧૭૦ कहाँ जा रहे हो? सुशील कुमार "रिंद" कहां जा रहे हो रहनुमां हमारे । अभी बहने दो अमृत के धारे || कहाँ जा....... अभी काम बहुत अधूरे पड़े हैं, अभी कुछ मसायल तो यूं ही खड़े हैं। हैं दरकार कुछ और एहसां तुम्हारे ॥ कहां जा....... स्मारक तुम्हें था जो जां से भी प्यारा, हो तामीर जल्दी अहद था तुम्हारा । शुरू करके अब हो रहे हो किनारे ॥ कहां जा...... तुम ॥ स्वर्गों की खुशियों से मसरूर तुम, जहां भर की तकलीफों से दूर तड़पते सिसकते हैं सेवक तुम्हारे || कहां जा........ निगाहों में आंसू दिलों में हे हलचल, बिखरने को है कुछ लम्हों में ये महफिल ।। अगर चाँद तुम हो तो हम हैं सितारे ॥ कहां जा......... स्मारक से जोड़ी है अपनी कहानी, रहेगी युगों तक ये तेरी निशानी ।। ये कुरबानी तेरी के होंगे नज़ारे ॥ कहां जा........ अभी जाने की भी कोई ये उमर थी, चौरासी में चौबीस की रिंद कसर थी । ये नाराजगी के हैं लगते इशारे ॥ कहां जा........ कहा जा रहे हो रहनुमां हमारे। अभी और बहने दो अमृत के धारे। कहां जा रहे .... મહત્તરા શ્રી મૃગાવતીશ્રીજી Ca
SR No.012083
Book TitleMahattara Shree Mrugavatishreeji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah and Others
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1989
Total Pages198
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size5 MB
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