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________________ विषय खंड श्री नमस्कार महामंत्र प्रश्न :- इन पांचों को नमस्कार करने से क्या लाभ होता है ? उत्तर :- पंच परमेष्ठि को नमस्कार करने से हम को सम्यग्दर्शन - ज्ञान और चारित्र का लाभ होता है तथा वीतराग ओर वीतरागोपासक श्रमणवरों को वन्दना करने से हम भी वीतरागदशा प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं । जब हमारी भावना वीतरागोपासना की ओर प्रवाहित होती है, तब हम अच्छे और खराब का विवेक प्राप्त कर आश्रवद्वारो का अवरोध करके संवर ओर निर्जरा भावना को प्राप्त करके, आत्मसाधना में प्रवृत्त होते है । तथा अन्तमें ईप्सित की प्राप्ती भी कर सकने में सशक्त हो जाते हैं । यह लोकोत्तर लाभ हमको सव लागमरहस्यभूत महामंत्र श्री नमस्कार मंत्र के स्मरण करने से प्राप्त होता है । तैतीस अक्षर प्रमाण नमस्कार चूलिका में यही तो दिखलाया गया है 1 प्रश्न :-- - श्री नमस्कार मंत्र को महामंत्र क्यों कहा जाता है ? उत्तर :- श्री नमस्कार मंत्र दो महामंत्र इसलिए कहा जाता है कि इसक विकरण त्रियोग से स्मरण एवं मनन करने से, अन्य लौकिक मंत्रो से जो सिद्धि मिलती है, उससे अधिक और अनुपम सिद्धि प्राप्त होती है । यह महामंत्र कर्मक्षय में भी सहायक है । इसके स्मरण से महापारी जनों के पार घुल जाते हैं, एवं धुल गए हैं। चौदह पूर्व के ज्ञाता - श्रुतकवली भगवान भी अपना पूरा जीवन एवं अन्तिम समय इसी महामंत्र के स्मरण में व्यतीत करते हैं । मुनिजन चित्तशुद्धि के लिये दि इसी मंत्र का जाप करते हैं । भूतकाल के ऐसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं कि जिनकी वास्तविकता में अंश मात्र भी सन्देह को अवकाश नहीं है । वर्तमान काल में भी भावपूर्वक किये गये नमस्कार मन्त्र स्मरण अचिन्यलाभ प्राप्ती के उदाहरण प्रसिद्ध है । ऐसे महामहिमाशाली सकलागमरहस्यभूत श्री नमस्कार मंत्र को महामन्त्र अथवा मन्त्राधिराज कहा जाना कोई हर्ज की बात नहीं है अपितु वास्तविक ही है । प्रश्न- " नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व साधुभ्य: " और "अ. सि. आ. उ साय नमः ये मन्त्र क्या है ? " 56 उत्तर - तार्किक शिरोमणी आचार्य प्रवर श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरीजी महाराज द्वारा किया गया नमस्कार मन्त्र का संक्षिप्तीकरण " नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व " है और अ. सि. आ. उ. सा. य नम साधुभ्यः यह मन्त्र अरिहंत का अ सिद्ध की 'सि' आचार्य का 'आ' उपाध्याय का साधु का 'सा' ये सव मिलकर 'असि आ उ साय नमः' यह अत्यन्त संक्षिप्त स्वरूप भी नमस्कार मन्त्र का ही है । जो आदरणीय एवं स्मरणीय हैं। कितने ही लोग ऐसे होते हैं कि जिन्हें 6 "6 कौड़ी की कमाई नहीं और क्षण मात्र का समय नहीं ” उनके लिये थोडा समय लगने वाले पद स्मरणीय हैं । जिन्हें समय बहुत मिलता है परन्तु वे आलस्य Jain Educationa International " ७९ उ For Personal and Private Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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